Monday, January 5, 2009

प्रेम प्रस्ताव ...

तुझे आ बिठा कर ले चलूँ ...
उस चाँद के झरोखे में ...
डर है ये कि चाँद न ..
कहीं धूमल हो इस धोखे में ...

कि एक परी जन्नत से कहीं ..
उतर आई मेरे लिए ...
इतनी निश्चल इतनी कोमल ..
बिना कोई स्वाँग किए |

वो मुस्कुरायी तो फूल खिल उठे ...
वो खिलखिलाई तो बिछडे मिल उठे ..
सौंदर्य कहते हैं सभी उसे ..
मैंने कहा तो अधर सिल उठे |

उसकी वो लट गालों से झूम के इतराई ..
आंखों की चमक जाने क्या कह आई ?
सोचता रह गया मैं कहाँ से ...
इतना स्नेह-प्रेम-सौंदर्य वो ले आई ?

नजर नही हटी जब देर तक मेरी ..
चुपके से वो यूँ शरमाई ...
इस पल पर पूरी कायनात लुटा दूँ ..
सोच मेरी आँखें भर आई |

मधुर वाणी में कुछ उसने बोला ...
जैसे सहस्त्रों वीणा के तारों को खोला ..
मन झंकृत कर गया वो एक ही शब्द ...
अर्थ बड़ा पर कितना भोला |

नज़ारे शायद बनते रहेंगे ...
ये पल भी समय छलनी में छनते रहेंगे ..
जोडियाँ स्वर्ग में बनती है शायद ..
हाँ ये रिश्ते यूँ ही बनते रहेंगे |

हे प्रिये ! इसे स्वीकार करो ...
अन्तः मन से अंगीकार करो ...
मैं ह्रदय फैलाये बैठा हूँ ..
तुम उर पुष्प का वार करो !

ये प्रेम मेरा कुछ सादा है ...
लेकिन अनंत से ज्यादा है ..
क्या बनोगी मेरी जीवन संगिनी ?
मैं चातक बनूँगा ये वादा है |

जय गान ...

वो चल पड़ा है वीर एक ...
हाथ में लिए त्रिशूल ...
सोचता नही जो परिणिति ...
फ़िर क्या है पुष्प क्या है शूल |

अंगारे बिखराती पलकें ...
ख़ुद को ही जला रही है ...
आंधी ले आई सासें ...
जीवन को चला रही है |

मदमस्त गज सी चाल है ...
प्रखर सा वो भाल है ...
कभी हुआ करता था मित्र ...
आज वो एक काल है |

लक्ष्य है अब दिख रहा ...
सामने उसे प्रत्यक्ष ...
तडित झंझा का वेग है ...
चल में वो है दक्ष |

हाहाकार कर उठी प्रकृति ...
देखकर ये ज्वाल मुख ...
भाव रहित अक्षि लिए ...
न कोई सुख न कोई दुःख |

वीर तू आगे निकल ...
सारा जहाँ स्वागत करेगा ...
जीत ले अपने प्रताप को ...
कायर यहाँ गिर मरेगा |

कुछ समय पश्चात् ...

जीत ...एक मंत्र है
अभिलाषा का
आशा का
हर्ष की
परिभाषा का
जो है लिए
एक भाव नया
जिसमें सबने
विश्वास किया
वो फलीभूत
हो चुका है
कुहरा घना
रो चुका है ॥
नई सुबह
आ रही है
कोयल देखो
गा रही है ....