Thursday, April 9, 2009

शर्माना तेरा .....

शर्माना तेरा ...
जैसे अक्स से नजरें चुराना तेरा ...
जैसे ख्वाबों की बटिया जोह के ...
फिर तेरे घर आना मेरा |

शर्माना तेरा ...
जैसे बात बात पर बच्चे सा इतराना तेरा ..
जैसे ओस की सप्तरंग छटा में प्रातः ...
निस्तब्ध सा डूब जाना मेरा |

शर्माना तेरा ...
जैसे उस अदा से नजरें झुकाना तेरा ..
जैसे नए साज को खोजता ...
वो टूटा ढोलक पुराना मेरा |

शर्माना तेरा ....
जैसे उस हंसी को अधरों में छिपाना तेरा ...
जैसे बोलने की हसरत दिल में लिए ...
हर एक शब्द भूल जाना मेरा |

शर्माना तेरा ...
जैसे उँगलियों से लट को उलझाना तेरा ...
जैसे उस लट को छूने की कोशिश में ...
हाथ से हाथ को दबाना मेरा |

शर्माना तेरा ...
जैसे भाल में सिलवटें पड़ जाना तेरा ...
जैसे तरंगिनियों के मेले में विस्मित ...
तुझ पर मर जाना मेरा |

शर्माना तेरा ...
जैसे एक कायनात के जन्म का फ़साना तेरा ...
जैसे तुझे पाने की आस में ...
प्रकृति सा शिशु बन जाना मेरा |

~वैभव

Wednesday, April 1, 2009

पुष्प और तितली

फक्र करता था फूल जो अपनी रंगेशुमारी पर ...
किराये के रंग वर्ण और छद्म आभा खुमारी पर ...

तोड़ कर उसका गुरूर तितली ने दिखा दिया ...
रंगों का वितरण अनोखा कैसे ? उसको सिखा दिया ...

खुद में रंगे तो क्या रंगे ! सिमट पड़े एक मुष्टिका में ...
रंगना है तो आसमान को रंगों दिल की वृतिक्का में ..

सिमट गए खुद में ही तो अस्तित्व ही मिट जायेगा ...
खुद को फैलाओ धरा में गात अमर हो जायेगा ...

पुष्प ! तुम्हारा अस्तित्व है गर और पुष्प रंग हैं ...
तितली तो बस द्विगुणित करती तुम्हें ! जैसे अनंग है ..|