Saturday, October 3, 2015

नूर















वजह नहीं है आपसे वफ़ा करने की कोई
पर आप जैसा कभी कोई मिला नहीं है ।

मोहब्बत से महरूम था ताउम्र धड़कता दिल मेरा
दिल से पूछो ज़रा, इसको कोई गिला नहीं है ।

आपके झूले की डाली देखो बेरंग सी हो गयी
कोई पत्ता हिला नहीं है , कोई फूल खिला नहीं है ।

आपके नूर की बारिश को , कैद कर सके दीवारों में
ऐसी कोई जगह नहीं है , ऐसा कोई किला नहीं है ।

आपकी याद की पनाह में , आबाद है जिंदगी मेरी
मुलाकातों का अभी तक, कोई सिलसिला नहीं है ।

एक बार चाँद को , देख कर खिलखिला दिये
वो आज तक अहले वफ़ा , आसमां से हिला नहीं है ।





मौजूं















मेरी साँसों को घोल के गिलास के मौजूं में
आज उसने नयी नयी सी शराब बनायी है ।

नए इश्क़ का मौसम है जवां जवां
कुछ बदली बदली सी वो भी नजर आई है ।

मुझसे बिछड़ के आईने में इतराते हैं तेवर
ये कैसी मोहब्बत थी ! ये कैसी जुदाई है !

 मोहब्बत में तो फ़ना होने का उसूल मुनासिब है
गलत वो समझ बैठे , सजा हमने पायी है ।


मेरी मौत पर जश्न का इंतजाम करो यारो
जाम उठाओ की आज मेरी रूह की रिहाई है ।

मेरे क़त्ल का इल्जाम मेरी ही बेवफाई के सर है
उसने बड़ी शिद्दत से अपनी वफ़ा निभायी है ।

उसके आशिकों को देखो आज कफ़न काम पड़ गए
वो खुदा थी इनकी , ये उसकी खुदाई है ।

मेरे जिस्म पर कफ़न चढाने का बहाना ये नया है
फिर क़त्ल करने खंजर नया, बड़ी दूर से वो लायी है ।

Friday, October 2, 2015

रंग


मैंने तुम्हारे अस्तित्व में छुपी
अपनी सम्भावनायें तलाशी है
और समझा है स्वयं को
तुममें छनते हुए धीरे धीरे ।

बारीक रेशे की तरह रुई के फाहों में
गुन कर तुमने एक धागा बनाया है
फिर कभी ओढ़ लिया होगा इसे बेफिक्र सा
तभी तो तुम्हारा ही रंग नजर आया है ।

मेरी साँसों में धीरे से घुलता नशा
प्रतिबिम्ब है तुम्हारी याद का
मदहोश होती आत्मा डुबकी लगाती
एक निशान बच गया है साथ का ।

निशान …
जिसके सहारे मुझे जिंदगी चलानी है
वैसे ! जैसे बगैर पहिये के गाडी
इस खेल में तुम ही थे अनाड़ी !
इस खेल में तुम ही थे खिलाड़ी !
और मैं तो वैसे भी नहीं हूँ अब
शरीर यहाँ बाकी कहीं कहीं हूँ अब !
तो बताओ मुझे मुझको लौटाओगे ?
या कोई और रंग चढ़ाओगे !

Saturday, April 25, 2015

कागज़ का टुकड़ा

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कागज के टुकड़ों में दौड़ती जिंदगी उसकी
पता नहीं वापिस कब मिलेगी !
खो गयी है आश्वासनों के समुन्दर में
उड़ गयी है सत्ता के बवंडर में
एक फ़ाइल को ताकती पथरायी नजरें
कि उसकी बिजली कब लगेगी !

नाले को ही सांस बना चुका वो
जहर को पानी बना के पीने लगा है
कुछ सपने अपने कुछ पराये हुक्मरानो के
अब अगले साल में जिंदगी जीने लगा है !
कागज़ की कश्ती बनाता , चलाता
वो कागज के कुछ टुकड़े सीने लगा है ।


सड़कों पर काँप कर चलती इज्जत
हर आहट से घबरा सहम जाती है
क्या पता उसको अखबार का कोना न मिले कोई
ये जिंदगी हर बार कहाँ रहम खाती है !
कागज़ के टुकड़ों में वो केस ही नहीं बनता
जहाँ एक और निर्भया चली आती है ।


मौत से पहले जीने की कवायद में
कुछ कागज़ के टुकड़ो के लिए …
कागज के टुकड़े चाहिए
और उन कागज़ के टुकड़ों के लिए
एक और कागज़ का टुकड़ा चाहिए !

ये सर्कस है बाबू ! ऐसे ही चलता है
यहाँ कागज़ का टुकड़ा
बड़ी मुश्किल से मिलता है ।
और मिलने के बाद भी एक और ठप्पा चाहिए !
तभी तो भाई
कागज का टुकड़ा चलता है ।