Sunday, July 14, 2013

Lost

Whisper of the ‘song blue’,
Melancholy in colorless hue
She is mirrored in a tiny view
She vanishes like the dew...

And I search for fragrance
Nowhere to be found
I close my eyes and listen
Yet! There is no sound...

But the sound of silence,
Creating a buzzing void
Oh! My miserable self,
I cannot avoid ...

The pain of serenity,
making a dent deep
The vice of divinity
 Breaking the crystal heap ...

And my emotions tumble
Listen! A faded rumble
Still searching for signs.. 
Will she ever mumble ?  

Monday, July 8, 2013

मानसून

बारिश की फुहार और मेरी खिड़की ,
फिर से बातें करते हैं 
बुलबुले से उठते यादों की छतरियों में ..
पुरजोर जिंदगी जीते मनचलों सी 
खिलखिला कर मरते हैं । 

वो देखो बन गयी है नदी एक ...
नाले की ओट में !
भीगता बच्चा एक कागज की किश्ती को ..
जहाज बनाकर चला रहा है 
दौड़ता पास उसके किनारे 
सपनो से सपने मिला रहा है । 

वो देखो बूँद मचलकर पत्र की गोद में गिरी है ..
पर कसमसा के बढ़ चली है अपने मायके ..
चिढाती पत्र को अठखेलियाँ करती 
पर ये क्या !
चुरा ले गयी बीच में उसे हवा निराली 
एक कसम तोड़ी थी ,
एक कसम निभा ली । 

दूर क्षितिज में देखो एकाकार होते ,
व्योम और धरा ..
झीना पर्दा बनता बादल छुपाने को ...
पर तेज कहाँ छुपता है भला ?
मेरी खिड़की के जाले की तरह ..
आधा जला , आधा खुला । 

ऊपर मेला लगा है गुब्बारों का ,
नाचते खेलते फव्वारों का ,
सात रंग की चरखी चल रही है 
बैठकर जिसमे इतरा रही है कोयल 
चिढा रही है चातक को ..
जो इन्तजार में स्वाति नक्षत्र के 
ब्रहमचारी बना बैठा है । 

और देखकर ये सब अब अधीर मन 
भीगने को व्याकुल है ,
चलो भीग कर आते हैं कुछ देर ..
बच्चे बन जाते हैं कुछ देर 
नहीं तो लाख भिगो लो तन को ...
माटी है वो तो भीग ही जाएगा 
पर !
मन के भीतर उस उसर बंजर जमीन पर ..
सूखा फिर से लौट के आएगा ।