Tuesday, March 20, 2018

किरदार

















मुझे जानने की ख्वाहिश बहुतों ने की
उनको पता नहीं था ..
मैं किरदार में हूँ !

मेरा किरदार अनोखा है
खुद से जुदा
खुद पर फ़िदा
देखता सबको
देखता ख़ुद को !
और हंस देता बेमतलब सा 
बेमतलब की बातों पर |
हंसाता रुलाता छिपाता सजाता
मेरा किरदार वादे निभाता
कुछ को समझ आता
कुछ को खटक जाता !
सुनकर ख़ामोश सोचता
मैं किरदार में हूँ !

कुछ चेहरे हैं , कुछ हैं मुखौटे
सिक्के चमक रहे हैं खोटे खोटे
वो भी तो किरदार हैं
वो भी असरदार हैं
फिर लड़ाई किरदारों की है ?
या मेरी तुम्हारी !
किरदार जान नहीं पायेंगे
पहचान नहीं पायेंगे
कोशिश तो करेंगे
शायद पहचान भी लें
पर मान नहीं पायेंगे !
मैं भी क्यूँ मानूँ ?
मैं तो किरदार में हूँ !

मेरा प्रेम भी किरदारों वाला है
तुमने भी तो शौक़ पाला है ?
सपने जिंदगी को मात दे रहे हैं
किरदार आग को आँच दे रहे हैं
डर क्यूँ रहे हो ?
तुम्हारी भी तो केंचुली है !
किरदारों की शोख़ी
विरासत में मिली है |
ये देख रहे हो न समाज !
इसका भी किरदार है
कभी मंदिर है कभी मस्जिद है
और कभी लुटता बाजार है !
तो आओ कुछ खरीदें यहाँ से
प्रेम , द्वेष , दया , हिंसा
सब मिलता है यहाँ |
कीमत बदल जाती है पर
किरदार देखकर !
तो बदल लेना तुम भी किरदार
दुकान देखकर !
मैंने तो मुफ्त में लिया है सब कुछ
मैं तो किरदार में हूँ |

कभी कभी जब खामोश सोता हूँ
तो अपने किरदार में नहीं होता हूँ
देख नहीं पाता खुद को तब !
तुम भी नहीं देख पाओगे
कितने शीशे लाओगे ?
आदमी नंगा होता है
अपने किरदार के बिना !
पता है तुम्हें
संभल नहीं पाओगे |
तो अपने किरदार में रहो
आँखे बंद करो
और कहीं दूर तक बहो
जहाँ एक गाँव नया है
और वहाँ भी हवा चल रही है 
नये नये किरदारों की !
मुझे ढूँढ रहे हो ?
नहीं मिलूंगा !
मैं किरदार में हूँ  |