चुप रहने की कोशिश है हर तरफ़
भीड़ पीछे हट रही है
वो अकेला आगे बढ़ रहा है
उसकी जीभ कट रही है
हामी भरने की क़वायद में
इंसान गायब हो रहे हैं
कंकालों से भरा है तालाब
मेढक साहब हो रहे हैं
सुबह सवेरे चल पड़ती है मशीन
हर पुर्जा जोरदार आवाज करता है
आवाज़ शायद सुन ले खरीदने वाला
सोचकर वो हर रात मरता है
अकेलेपन से डरता है खौफजदा हो
भीड़ के साथ दौड़ने लगता है
दोनों हाथों से पकड़ कर हड्डी रीढ़ की
पूरी शिद्दत से मोड़ने लगता है
पिघल जाता है लोहा लम्हों में
ढलकर औजार बन जाता है
काट देता है दूसरे लोहे को
बेरहम हथियार बन जाता है
बेइंतहां डर को सीने में लिये
सिमट कर सोने लगा है
हंसता मुस्कुराता दिन बिताता
अंधेरों में रोने लगा है
जीभ की परवाह हो गयी उसे
जिगर की खबर नहीं रही है
वैसे भी इस उत्तराधुनिक युग मे
ये भी सही है , वो भी सही है
भूल गया कि केवल आँखे भी
काफ़ी हैं जी भर बोलने के लिये
भूल गया कि केवल साँसें भी
काफी हैं किसी के डोलने के लिये
भूल गया कि आवाज उठाने के लिये
दूसरे पाले में झपट्टा मारना जरूरी है
जीत की गुंजाइश कहीं कभी बाकी रहे
इसलिये बेख़ौफ़ हो हारना जरूरी है
याद उसको आ गया जो ये नज़ारा
टूट के चमकेगा फ़िर से वो सितारा
जीभ लंबी हो के रस्सी बन सकेगी
फांद बन जायेगा कोमल ये नजारा
थरथरा जायेंगे हुक्मरानों के घर
साथ उसके तुमने गर जो दहाड़ा
एक उसकी लाश पर ही बन सकेगा
हर पहर आज़ाद बागी घर तुम्हारा
हर पहर आज़ाद बागी घर तुम्हारा