निनाद की है धुन बजी
और देखो कैसे प्रकृति सजी ..
नगर नगर डगर डगर ..
शहर शहर पहर पहर ...
हो रहा है नाद ..
तर्कशास्त्र-विवाद...
इसका कि कैसे सजायें ..
कैसे मनाएं ..
कैसे बताएं ..
कि दिवस है ख़ास
लोगों का विश्वास ..
पूर्ण आभास
कुछ तो बताओ ?
कौन सा चेहरा ..
आज है गहरा ...
मन की दुदुम्भी
विनम्रता का अँधेरा ..
किसका है पहरा ?
हे मन ..जान तू
पहचान तू ..
सृष्टि का फली
वरदान तू ..
आज है जन्मदिवस ...
निनाद - धरा से अंचल ..
कर रहे करतल ...
मुस्कुराते वसंत ..
चलता रहे ..
खुशियों का तराना
जीवन पर्यंत |
Tuesday, August 19, 2008
पुष्प सौगात
बढ़ना अविरत कर्म बड़ा है
जीवन में भी मर्म पड़ा है ..
ऋतुएं आती है ...
खुशबू लाती है ..
काँटों का भी ...
दर्द झलकता है ...
उसे भी छूने वाले को भी..
लेकिन अन्तर है
मर्मांतर है ???
कंटक दर्द सहकर भी ..
पुष्प का सहभागी है ...
तो क्या हमारा दर्द मिथ्या है ...??
नही !!!! है तो ...
दुनिया अभागी है ...
माली को देखो ...
कंटक उसे अपना एहसास दिलाता है ...
लेकिन वो हंसकर ..
उसे सहलाता है ...
सीखने को है ...
बहुत कुछ यहाँ ...
इतना पावन है ..
अपना जहाँ ...
तुम भी माली बनो ...
जीवन कंटकों को सहलाकर ..
पुष्प वर्षा करो ..
क्यूंकि कोई नही रहता..
एक क्षण के बाद है ...
फ़िर दुनिया में ..
बस उस खुशबू का प्रतिसाद है ...
जीवन में भी मर्म पड़ा है ..
ऋतुएं आती है ...
खुशबू लाती है ..
काँटों का भी ...
दर्द झलकता है ...
उसे भी छूने वाले को भी..
लेकिन अन्तर है
मर्मांतर है ???
कंटक दर्द सहकर भी ..
पुष्प का सहभागी है ...
तो क्या हमारा दर्द मिथ्या है ...??
नही !!!! है तो ...
दुनिया अभागी है ...
माली को देखो ...
कंटक उसे अपना एहसास दिलाता है ...
लेकिन वो हंसकर ..
उसे सहलाता है ...
सीखने को है ...
बहुत कुछ यहाँ ...
इतना पावन है ..
अपना जहाँ ...
तुम भी माली बनो ...
जीवन कंटकों को सहलाकर ..
पुष्प वर्षा करो ..
क्यूंकि कोई नही रहता..
एक क्षण के बाद है ...
फ़िर दुनिया में ..
बस उस खुशबू का प्रतिसाद है ...
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