निनाद की है धुन बजी
और देखो कैसे प्रकृति सजी ..
नगर नगर डगर डगर ..
शहर शहर पहर पहर ...
हो रहा है नाद ..
तर्कशास्त्र-विवाद...
इसका कि कैसे सजायें ..
कैसे मनाएं ..
कैसे बताएं ..
कि दिवस है ख़ास
लोगों का विश्वास ..
पूर्ण आभास
कुछ तो बताओ ?
कौन सा चेहरा ..
आज है गहरा ...
मन की दुदुम्भी
विनम्रता का अँधेरा ..
किसका है पहरा ?
हे मन ..जान तू
पहचान तू ..
सृष्टि का फली
वरदान तू ..
आज है जन्मदिवस ...
निनाद - धरा से अंचल ..
कर रहे करतल ...
मुस्कुराते वसंत ..
चलता रहे ..
खुशियों का तराना
जीवन पर्यंत |
Tuesday, August 19, 2008
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1 comment:
ahaaa .. kya flow hai ! [:)]
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