ओस की बूंदें
मोती लुटा रही हैं...
समीर की बाहें,
कण कण जुटा रही है ...
एक ईश है जना जो,
वो सोम का प्रतिसाद है ..
सोमेश का ही गर्व है,
वो गर्व का ही नाद है ....
कुहासे की चादर तले,
इक मर्म पल रहा है ...
पारुल की एक छवि है,
जो स्फटिक छल रहा है |
श्वेत बर्फ ख़ुद में समेटे,
नीलिमा सा बन रहा है ...
सात रंग के सात भाव ,
स्व गात में छन रहा है |
इस मुग्ध दृश्य की वेदना में,
सोमेश का ही हृद खिला है ..
इस अलौकिक चेतना में,
पार कहीं एक उल मिला है |
ये दिवस का प्रतिसाद है ...
जन्मदिन कुछ ख़ास है ...
वर्ष की यादें पास है ...
अंतर्मन में परिहास है ..
मन में किसी का वास है |
सोमेश का मर्म,
अनूठा अनूप,
एक ब्रहम का अनुभव ...
दिव्य स्वरुप ...
नीर की खामोशी ...
जलोधि का उफान ..
असत्य की पराजय ..
सत्य का प्रमाण ..
पूरे मन से ...
तप से ..अर्पण से ...
बधाइयाँ ...जन्मदिवस के शगल की ..
जीवन में परिवर्तन युगल की |
Tuesday, December 30, 2008
Monday, December 15, 2008
झरोखा ...
श्वेत धवल निर्मल चंचल ,
एक पवन चली संग प्रीत लिए ...
वो शौर्यवान, बलवान, प्रवीण का ..
प्रिया ह्रदय का गीत लिए ...|
ये मंद हवा की भांति सरल ,
जिसका अन्तः है विशाल विरल ...
समा सकता है ..ब्रह्म फिजा में ,
फ़िर क्या ठोस और क्या तरल !
भोर का नन्हा स्पर्श दिया ,
फ़िर दिवा सौर से युद्ध किया ..
झंझा को समेटे ख़ुद में ,
सोम दिया ...और दर्द लिया |
कहीं बालक की लोरी बन आई,
कहीं फसलों में हरियाली छाई ....
स्वेद बिन्दु को किया आत्मसात ...
मुस्कान किसी की मुस्काई !
प्रवीण वायु की है बारात जो,
भावों का जलसा ले आई ...
धरा में विचरण किया है उसने ...
स्व प्रिया हेतु नभ में छाई |
हे प्रिया ! इसे स्वीकार करो ...
अन्तः मन से अंगीकार करो ...
प्रबल प्रवीण की विजय पताका ...
उर पुष्प का वार करो !!
एक पवन चली संग प्रीत लिए ...
वो शौर्यवान, बलवान, प्रवीण का ..
प्रिया ह्रदय का गीत लिए ...|
ये मंद हवा की भांति सरल ,
जिसका अन्तः है विशाल विरल ...
समा सकता है ..ब्रह्म फिजा में ,
फ़िर क्या ठोस और क्या तरल !
भोर का नन्हा स्पर्श दिया ,
फ़िर दिवा सौर से युद्ध किया ..
झंझा को समेटे ख़ुद में ,
सोम दिया ...और दर्द लिया |
कहीं बालक की लोरी बन आई,
कहीं फसलों में हरियाली छाई ....
स्वेद बिन्दु को किया आत्मसात ...
मुस्कान किसी की मुस्काई !
प्रवीण वायु की है बारात जो,
भावों का जलसा ले आई ...
धरा में विचरण किया है उसने ...
स्व प्रिया हेतु नभ में छाई |
हे प्रिया ! इसे स्वीकार करो ...
अन्तः मन से अंगीकार करो ...
प्रबल प्रवीण की विजय पताका ...
उर पुष्प का वार करो !!
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