Monday, December 15, 2008

झरोखा ...

श्वेत धवल निर्मल चंचल ,
एक पवन चली संग प्रीत लिए ...
वो शौर्यवान, बलवान, प्रवीण का ..
प्रिया ह्रदय का गीत लिए ...|

ये मंद हवा की भांति सरल ,
जिसका अन्तः है विशाल विरल ...
समा सकता है ..ब्रह्म फिजा में ,
फ़िर क्या ठोस और क्या तरल !

भोर का नन्हा स्पर्श दिया ,
फ़िर दिवा सौर से युद्ध किया ..
झंझा को समेटे ख़ुद में ,
सोम दिया ...और दर्द लिया |

कहीं बालक की लोरी बन आई,
कहीं फसलों में हरियाली छाई ....
स्वेद बिन्दु को किया आत्मसात ...
मुस्कान किसी की मुस्काई !

प्रवीण वायु की है बारात जो,
भावों का जलसा ले आई ...
धरा में विचरण किया है उसने ...
स्व प्रिया हेतु नभ में छाई |

हे प्रिया ! इसे स्वीकार करो ...
अन्तः मन से अंगीकार करो ...
प्रबल प्रवीण की विजय पताका ...
उर पुष्प का वार करो !!

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