वो चल पड़ा है वीर एक ...
हाथ में लिए त्रिशूल ...
सोचता नही जो परिणिति ...
फ़िर क्या है पुष्प क्या है शूल |
अंगारे बिखराती पलकें ...
ख़ुद को ही जला रही है ...
आंधी ले आई सासें ...
जीवन को चला रही है |
मदमस्त गज सी चाल है ...
प्रखर सा वो भाल है ...
कभी हुआ करता था मित्र ...
आज वो एक काल है |
लक्ष्य है अब दिख रहा ...
सामने उसे प्रत्यक्ष ...
तडित झंझा का वेग है ...
चल में वो है दक्ष |
हाहाकार कर उठी प्रकृति ...
देखकर ये ज्वाल मुख ...
भाव रहित अक्षि लिए ...
न कोई सुख न कोई दुःख |
वीर तू आगे निकल ...
सारा जहाँ स्वागत करेगा ...
जीत ले अपने प्रताप को ...
कायर यहाँ गिर मरेगा |
कुछ समय पश्चात् ...
जीत ...एक मंत्र है
अभिलाषा का
आशा का
हर्ष की
परिभाषा का
जो है लिए
एक भाव नया
जिसमें सबने
विश्वास किया
वो फलीभूत
हो चुका है
कुहरा घना
रो चुका है ॥
नई सुबह
आ रही है
कोयल देखो
गा रही है ....
Monday, January 5, 2009
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2 comments:
bahut badhiya... gaudd lebill.. guru peloo kavi ho yaar.maujj aa gayi
dhanyawaad ..thankuuuu ...iss kavita ko likhne se purva hatash sa anubhav kar raha tha ...lekin likhne ke bad josh aa gaya :)
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