रंग और लहू में अन्तर नही बचा है ...
कोई भाल पर लगा है ..
कोई भाल पर सजा है ...
एक एक रक्त बूँद छूटती जा रही है ...
और वो कहते हैं, होली आ रही है !!
होली तो था प्रेम का सद्भाव का पुलिंदा ...
धर्म जाति भेद में रहा न भाव जिन्दा ...
आज गले मिलने में भी भय सोच ला रही है ...
और वो कहते हैं , होली आ रही है !!
दहन था उस होलिका का , बदी की जो प्रतीक थी ...
जल में पाप धुलते थे तब ..होली की ये सीख थी ...
आज हाय ! अग्नि ये क्यूँ प्रहलाद को जला रही है ... ?
और वो कहते हैं , होली आ रही है !!
कुछ गीत हो रहे हैं ? या ये मेरा भ्रम है ...
क्रंदन हो रहा चहुँ ओर ..ये तो सिर्फ़ तम है ...
आशा भी मर चुकी है अब जिंदगी सता रही है ...
और वो कहते हैं , होली आ रही है !!
Monday, March 9, 2009
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4 comments:
शानदार वैभव !! जिस बेहतरीन और लयबद्ध तरीके से आपने अपने भाव उकेरे हैं, दिल बाग़ बाग़ हो उठा है ! भगवान् आपकी कलम को और कल्पना दे | खैर..... होली मुबारक !!
sarahana ke liye tahe dil ki gehraiyon se dhanyawaad ...pareekji kuch veer ras ka ho jaaye [:)]
uttam!
So neat and so true!
Lage raho bhai.
-Madhusudan.
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