वायु के समान जो ...
प्रचंड हो के चल रहा ..
मदमस्त गज की चाल में ..
बन प्रलय जो टल रहा ...
जो शेर की चिंघाड़ से ...
है चीरता वो चुप सा वन ...
जो खड्ग के प्रहार से ...
है भेदता वो भीरु मन ...
है रूप में चमक कहीं ...
है बात में खनक कहीं ...
नीड़ की उस टोह में ...
जो कर चले धमक कहीं ...
वो शौर्य का प्रतीक हैं ...
वो शहीदों का गीत है ...
मन से गर जो लड़ उठे तो ..
हार में भी जीत है ...
वो विजय का प्रमाण है ...
वो लक्ष्य भेदी बाण है ...
वो लहू का अभिमान है ...
वो मुकुटमणि की शान है ...
वो वीरता का दंभ है ...
वो अचल अटूट खम्ब है ..
वो कर्म से महान है ...
वो विश्व रूप ज्ञान है ...
उस शास्त्र को ..
उस अस्त्र को ...
प्रवीणता का भान है ...
तत्त्व का भी ज्ञान है ...
अंतिम ये प्रमाण है ..
कि वीर ही महान है ..
धीर ही महान है ...
गर्व ही महान है ...
शौर्य ही महान है |
Thursday, June 18, 2009
Thursday, June 4, 2009
तत्त्व ...
कुछ नया सा ..ख्वाब सा ...
एक सत्व के आभास सा ...
एक भक्त की अरदास सा ..
एक भ्रमर के परिहास सा ..
एक नूर के आनंद सा ...
एक सुखमयी सानंद सा ..
एक भाव जो निर्बंध सा ..
एक सूर के उस छंद सा ...
एक जलोधि के आगोश सा ..
एक पयोधि से खरगोश सा ...
एक चेतन मन मदहोश सा ...
एक खग कलोल खामोश सा ...
एक वीणा की झंकार सा ...
एक रागों के अधिकार सा ...
एक शब्दों के संसार सा ...
एक लयबद्ध श्रृगार सा ...
एक परमाणु के से मर्म सा ...
एक मानवता के धर्मं सा ...
एक शर्माती सी शर्म सा ...
एक गीता के उस कर्म सा ...
जो तत्त्व है ...
जो सत्व है ...
जो ज्ञान है ...
संज्ञान है ...
जो द्रव्य है ..
न श्रव्य है ...
उस तेज को ...
पर सेज को ...
प्रणाम है ..
और चाह है ..
जिसको ढूंढती ...
ये राह है |
एक सत्व के आभास सा ...
एक भक्त की अरदास सा ..
एक भ्रमर के परिहास सा ..
एक नूर के आनंद सा ...
एक सुखमयी सानंद सा ..
एक भाव जो निर्बंध सा ..
एक सूर के उस छंद सा ...
एक जलोधि के आगोश सा ..
एक पयोधि से खरगोश सा ...
एक चेतन मन मदहोश सा ...
एक खग कलोल खामोश सा ...
एक वीणा की झंकार सा ...
एक रागों के अधिकार सा ...
एक शब्दों के संसार सा ...
एक लयबद्ध श्रृगार सा ...
एक परमाणु के से मर्म सा ...
एक मानवता के धर्मं सा ...
एक शर्माती सी शर्म सा ...
एक गीता के उस कर्म सा ...
जो तत्त्व है ...
जो सत्व है ...
जो ज्ञान है ...
संज्ञान है ...
जो द्रव्य है ..
न श्रव्य है ...
उस तेज को ...
पर सेज को ...
प्रणाम है ..
और चाह है ..
जिसको ढूंढती ...
ये राह है |
विदाई
गुपचुप बैठी वसंत देखो ..
मनुहार करता अम्बर देखो ...
दूर क्षितिज से ..
पोटली में बांधे ...
कुछ ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
पवन का वो गीत सुनो ...
पेडों का संगीत बुनो ...
जो पत्रकों की ..
सरसराहट में ..
नव राग छेड़े गा रहा है ..
उसके लिए.... जो जा रहा है |
श्वेत स्वर्ण की जगमगाहट ...
हिमगिरी की वो सुगबुगाहट ...
अपने ही अंदाज में ..
कम्पन ला रही है ...
जिसकी लय से उपजा सौंदर्य ...
देखो देवदार को ...
भा रहा है ...
उसके लिए ...जो जा रहा है |
नीर का वो सादापन ...
निर्मल, निश्छल, भोलापन ...
स्वाति नक्षत्र की उस बूँद को ...
खुद में समा कर ...
एक सीप ढूंढ ..मना कर ...
मोती उसको बना कर ...
आज ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
मनुहार करता अम्बर देखो ...
दूर क्षितिज से ..
पोटली में बांधे ...
कुछ ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
पवन का वो गीत सुनो ...
पेडों का संगीत बुनो ...
जो पत्रकों की ..
सरसराहट में ..
नव राग छेड़े गा रहा है ..
उसके लिए.... जो जा रहा है |
श्वेत स्वर्ण की जगमगाहट ...
हिमगिरी की वो सुगबुगाहट ...
अपने ही अंदाज में ..
कम्पन ला रही है ...
जिसकी लय से उपजा सौंदर्य ...
देखो देवदार को ...
भा रहा है ...
उसके लिए ...जो जा रहा है |
नीर का वो सादापन ...
निर्मल, निश्छल, भोलापन ...
स्वाति नक्षत्र की उस बूँद को ...
खुद में समा कर ...
एक सीप ढूंढ ..मना कर ...
मोती उसको बना कर ...
आज ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
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