गुपचुप बैठी वसंत देखो ..
मनुहार करता अम्बर देखो ...
दूर क्षितिज से ..
पोटली में बांधे ...
कुछ ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
पवन का वो गीत सुनो ...
पेडों का संगीत बुनो ...
जो पत्रकों की ..
सरसराहट में ..
नव राग छेड़े गा रहा है ..
उसके लिए.... जो जा रहा है |
श्वेत स्वर्ण की जगमगाहट ...
हिमगिरी की वो सुगबुगाहट ...
अपने ही अंदाज में ..
कम्पन ला रही है ...
जिसकी लय से उपजा सौंदर्य ...
देखो देवदार को ...
भा रहा है ...
उसके लिए ...जो जा रहा है |
नीर का वो सादापन ...
निर्मल, निश्छल, भोलापन ...
स्वाति नक्षत्र की उस बूँद को ...
खुद में समा कर ...
एक सीप ढूंढ ..मना कर ...
मोती उसको बना कर ...
आज ला रहा है ..
उसके लिए ...जो जा रहा है |
Thursday, June 4, 2009
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