Wednesday, August 25, 2010

जाम का सुरूर ....

लो शुरू हो गयी एक और होली खून की ...
मैं सोचता रहा कि जहां जुड़ने लगा है !

एक तीर जो करने वाला था निशाने वार ..
कमबख्त ! अपनी राह से मुड़ने लगा है ..

दो बूढ़ी आँखें देखती हैं राह आज भी ...
कौन उन्हें बताये कि बेटा अब उड़ने लगा है !

जान कुर्बान कर जिस यार पर वार दिया सब कुछ ...
वो यार देखो आज ! मुझसे ही कुढने लगा है !