लो शुरू हो गयी एक और होली खून की ...
मैं सोचता रहा कि जहां जुड़ने लगा है !
एक तीर जो करने वाला था निशाने वार ..
कमबख्त ! अपनी राह से मुड़ने लगा है ..
दो बूढ़ी आँखें देखती हैं राह आज भी ...
कौन उन्हें बताये कि बेटा अब उड़ने लगा है !
जान कुर्बान कर जिस यार पर वार दिया सब कुछ ...
वो यार देखो आज ! मुझसे ही कुढने लगा है !
Wednesday, August 25, 2010
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