Friday, November 12, 2010

बुत

उस देश में ...
कुछ छिटकी हुई रोशनी थी ...
और कुछ बुत थे अनजाने से ..
हर बुत में जैसे जान थी .....
और नूर बरसता था |

मैं आगे बढा छूने उसे..
क्यूंकि वो बोलता था ..
वो ठिठक गया ..
मैं ठिठक गया ..
वो डर रहा था ..
मैं भी |

आँखें उसकी अजीब थी ..
अलसाई सी ..लेकिन स्फटिक ..
वो देख सकता था खुद को ..
गर्व से दर्प से ..
मैंने भी कोशिश की ..
पर पाप दिखा ..
मैं रुक गया ..
अपने देश में |