उस देश में ...
कुछ छिटकी हुई रोशनी थी ...
और कुछ बुत थे अनजाने से ..
हर बुत में जैसे जान थी .....
और नूर बरसता था |
मैं आगे बढा छूने उसे..
क्यूंकि वो बोलता था ..
वो ठिठक गया ..
मैं ठिठक गया ..
वो डर रहा था ..
मैं भी |
आँखें उसकी अजीब थी ..
अलसाई सी ..लेकिन स्फटिक ..
वो देख सकता था खुद को ..
गर्व से दर्प से ..
मैंने भी कोशिश की ..
पर पाप दिखा ..
मैं रुक गया ..
अपने देश में |
Friday, November 12, 2010
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4 comments:
लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...
bahut sundar abhivykati naye vishay ko ukera hai, badhai
अच्छी प्रस्तुति ...
रोचक प्रस्तुति .
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