बढ़ना अविरत कर्म बड़ा है
जीवन में भी मर्म पड़ा है ..
ऋतुएं आती है ...
खुशबू लाती है ..
काँटों का भी ...
दर्द झलकता है ...
उसे भी छूने वाले को भी..
लेकिन अन्तर है
मर्मांतर है ???
कंटक दर्द सहकर भी ..
पुष्प का सहभागी है ...
तो क्या हमारा दर्द मिथ्या है ...??
नही !!!! है तो ...
दुनिया अभागी है ...
माली को देखो ...
कंटक उसे अपना एहसास दिलाता है ...
लेकिन वो हंसकर ..
उसे सहलाता है ...
सीखने को है ...
बहुत कुछ यहाँ ...
इतना पावन है ..
अपना जहाँ ...
तुम भी माली बनो ...
जीवन कंटकों को सहलाकर ..
पुष्प वर्षा करो ..
क्यूंकि कोई नही रहता..
एक क्षण के बाद है ...
फ़िर दुनिया में ..
बस उस खुशबू का प्रतिसाद है ...
Tuesday, August 19, 2008
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1 comment:
ati uttam gurudev.. satya hi hai .. maali humein ye sikhlata hai ki pushp ki khushboo bikherne ke liye kantakon ko to sehna hi hoga ...
rituein aati hain .. khushbooein laati hain (shaayad aisa hona chahiye.. kshama)
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