Thursday, May 28, 2009

अदना सा इंसान

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
चलता फिरता ...
बर्फ का टुकडा ...
जोश में भी पिघल जाता हूँ ...
ख्वाब अपने निगल जाता हूँ ...
राह बनती है ..है तो ..फिर
दूसरी ओर निकल जाता हूँ ...

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
मुझे डर लगता है ...
अट्टालिकाओं से !
जिसमें मेरा पसीना लगा है ...
और चार पहिये के उस इंसान से ...
जो दौड़ता है ..बरबस ...
मेरी जान लेने के लिये |

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
पेट पर रखकर पत्थर ...
सोचता हूँ भूख मिट गयी ...
और भूल कर भी नहीं देखता सामने ...
क्या पता कोई स्वान बिस्किट खाता दिख पड़े |

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
छुप छुप कर लकडी जला कर ...
कुछ आधी जली रोटी सेंकता हूँ ...
कुछ बड़े लोग आकर ..तोड़ देते चूल्हा मेरा ...
कहते परदुषण होगा !!!!
मैं लिपट जाता अपने चीथडो वाले कम्बल में ...
और देखता उन्हें उनकी कार में ...धुंआ उडा कर ...
पास के कारखाने के गंदे नाले के किनारे चलते हुए |

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
मेरा बच्चा खेलता है नगरपालिका के डब्बे में ...
कुछ सभ्य से बच्चे आकर नाक बंद कर निकल जाते हैं ...
और फेंक जाते हैं टॉफी के कपडे खरे !
वो सोचता है कि कचरे के डब्बे में क्यूँ नहीं फेंका इसे ?
फिर बटोर कर उन्हें ...अपनी खेलती दुनिया में रम जाता है |

मैं एक अदना सा इंसान हूँ ....
सपने दिखाता लोगों को अपनी डुगडुगी बजाकर..
आवाज जिसकी मेरे आलावा सुनते हैं सभी ...
मैं भी सुनता हूँ लेकिन अन्तः में नहीं !
डरता हूँ जीवन तो टूट गया है ....
सपने न टूट जाएँ कहीं |

4 comments:

Deepak Pareek said...

दर्द को सुन्दर भाव से बयान किया है | पर मैं अत्यधिक प्रसन्न होता यदि इसे थोडा और कवितामय बनाया गया होता !!

Vaibhav Rikhari said...

kuch naya prayaas kiya tha bas bhaav jodkar bina niymo ke ... kavita ka ye roop bhi hai lekin shayad main nyaay nahi kar paaya

Deepak Pareek said...

aapne bharpoor aur yathochit nyaaya kiya... isme koi do raay nahi vaibhav.

Maulshree said...

hey.. tumne yeh sab kavitayen likhi hain?? bahut achchi hain