तू चल पड़े जो सिंह सा तो क्या धरा है क्या गगन !
डोल मदमस्त सा तू कर चिंघाड़ हो मगन |
कायरों की भीड़ में पुकारता तू हंस के चल ..
ठूंठ के इस युग्म में बढा क़दम फिर मचल |
मृत्यु एक सोम है बस प्रश्न है कि कब पिए ?
ये नहीं कितना जिये ..ये है कि कैसे जिये ?
खुद को मारना बदल के उठ प्रचंड तू निकल ..
मर रहा है क्या असंख्य मौत पूछता है पल ?
हर कोई है जी रहा तो जीने में क्या बात है ?
कर सफल जो जन्म को तो वो सत्य प्रसाद है |
आज गर तू छुप गया तो कायर ही कहलायेगा ..
नरमुंड हैं पड़े तू भी एक बन जाएगा |
शस्त्र उठा युद्ध कर , परिणाम से तू अब न डर ...
विजयी हो बन अजर या शहीद हो तू बन अमर |
Thursday, August 13, 2009
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7 comments:
speechless I stand... you leave me dumbfounded! Its such an inspiring write, I can feel my nerves going crazy.
Keep it up, too good man!
Finest Hindi Poetry .. too professional .. so inspiring for me....
ये कविता नही है बंधुवर ... आपने साक्षात हृदय उतार कर रख दिया है मानो !!
श्रीराम आपको और निपुणता एवं आपकी कलम को और हृदय प्रदान करें !
mere to raogte khade ho gaye poem padh kar ... kya likha hai Rikhari Bhaiya ... sat sat pranaam itni acchi rachna ke liye
sabhi ko dhanyawaad ...aur swatantrata divas ki shubhkaamnayein :D
Must kavita(poem) hain though kuch words to mere uppar se nikal gaye
Yeh ladka bahut aage jayega
bahut hi sundar rachna hai bhaiyaa, ye aapki sabse uttam or athbhut rachnao me se eak hai.
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