वीर का स्वभाव उसके वार से पहचान लो ...
मौन वो है पर नहीं रण में, तुम ये जान लो ...
'नर मुंड' ही लिपि हैं ..'विक्षत' ही हैं चंद बोल ..
'चीत्कार' ही प्रभाव है ..रण के जब रहस्य
अर्जुन के सम उद्विग्न ..
शब्द में फंसा हुआ ...
स्वयं आत्मग्लानि में ..
खुद में ही धंसा हुआ !
सोच कृष्ण मन में है ..
'गीता' रण के वन में है ..
उद्वेग से परे झलक ..
भीड़ से अलग विलग ..
देख अपने आप को ..
भीरु क्यूँ तो हो रहा ?
परिणाम से विलग थलग ..
स्वप्न में क्यूँ सो रहा ?
कर्म योगी गर तू है तो लक्ष्य का क्यूँ भान है ?
शस्त्र बस उठा ले तू ..'कर्म ही बस आन है' |
क्या होगा क्या नहीं .?
तेरे बस में कब था ये .. ?
शमशान में मत पुकारना कि ..
तेरे बस में सब था ये !
Monday, March 21, 2011
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