Saturday, May 5, 2012

चीखता शहर

गुमनाम गलियाँ ताकती हैं ..
अँधेरा पसरा हुआ है ..
मंजिल का इस्तकबाल बेमानी है |

वो देखो अँधेरे की डरावनी शकल ..
चीखता जबड़ा चीत्कार करता ..
कान बंद करती फिजा ..
रोशनी का ख़याल बेमानी है |

रक्त से सनी जमीन पर ..
गिद्ध मंडरा रहे हैं |
मांस का लोथड़ा बचा है कहीं ..
तड़पता हुआ जैसे जान बाकी हो .
जान का खयाल बेमानी है |

सर कटे लोग चलते हुए ..
शहर की सुनसान सड़कों पर ..
मरघट का अंदाजा नहीं मिलता ..
कुछ मुंड भले मिल जाते हैं !
जान की कीमत नहीं बाजारों में
जान का ये हाल बेमानी है |

शहर की आबोहवा जहरीली है
लगता है किसी ने मौत पी ली है
दर्द का अंदाज अनोखा है ..
हर दिल में एक झरोखा है ..
झाँक कर अन्दर क्या करेगा मुसाफिर ..
मोहब्बत का ख़याल बेमानी है |

कदम उठाने की हिम्मत नहीं होती ..
नजर चुराने की हिम्मत नहीं होती ..
अंगार हैं क़दमों को ठिकाना नहीं मिलता ..
दुनिया बसाने के लिए उसको ज़माना नहीं मिलता ..
इशारों की बातें इशारे नहीं समझते ..
इशारों का ख़याल बेमानी है |

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