Monday, July 30, 2012

औरत ...


जब तक मैं कार के विज्ञापन में सामने परोसी जाउंगी ...
जब तक मैं सिगरेट के विज्ञापन में नग्न नजर आउंगी ..

जब तक मुझे बस सजने वाली गुडिया समझा जाएगा ...
जब तक मुझे घर से स्टेशन छोड़ने कोई पुरुष आएगा ...

जब तक मैं बस  राजनीति का प्यादा बनकर रहूंगी  ..
जब तक मैं  बस 'कैसी लग रही हूँ' चुपके से कहूँगी ...

जब तक मुझे बस बेटी, बहिन और माँ समझा जाएगा ...
जब तक TV पर FAIR AND LOVELY का चेहरा आएगा ..

जब तक मैं पुरुषों के बीच गालियों का हिस्सा रहूंगी ...
जब तक मैं नीला चेहरा अपना , बच्चों की खातिर सहूंगी ..

जब तक बस FORUMS पर यूँ बस बात मेरी की जायेगी ...
जब तक हर दिल में इज्जत और आग नहीं लग पाएगी ..

तब तक बोलो कैसे मैं कैसे उस शीशे से बाहर आउंगी ?
तब तक बोलो कैसे मैं सितारों में चमक पाउंगी ?

Monday, July 23, 2012

आंसू और मैं


मैं आंसुओं से बात करता ..
पूछता अरदास करता ..
क्यूँ निकलते यूँ अचानक ?
वक़्त की तौहीन करते !

मैं रोकता मैं टोकता ..
मैं नोचता ...मैं सोखता ..
पर वो नहीं रुकते कभी ...
हुक्म की तामील करते !

पर एक आंसू रुक गया ..
उस दिन पलकों की छाँव में ..
फिर वही चौपाल बैठी ..
पुराने उस गाँव में ..|

कहने लगा वो चमककर ..
बह रहा हूँ मैं इधर ...
तेरे बस से क्यूँ बहूँ ...
जब तू इक पत्थर बना |

तू देखता बच्चा कोई ..
सड़क पर कटोरा लिए ...
या तो तू कुछ झिड़कता है ..
या तो कुछ कहता नहीं ..
और मैं भी अब बहता नहीं |

तू देखता किसान तेरा ...
खाना खिलाकर खुद को मारता है ..
और फिर TV ऑन करता तू शान से ..
सरकार को बस झाड़ता है |
मैं बाहर आने को मचलता फिर से ..
तू गर्भ में मुझको मारता है |


पानी में जहर मिल गया है ..
वो परेशान है कैसे पिए !
तू भी परेशान है अपने कुत्ते के लिए ...
बिना PEDIGREE वो कैसे जिए !
अब जब इंसान की ये बात है 
तो फिर बता मेरी क्या बिसात है ?

ऐसा नहीं कि मैं अब नहीं निकलता ...
बस आधुनिक प्रेमियों की आँखों में रहता हूँ ...
बिस्मिल और सुखदेव की नहीं ...
शायद देश अब आजाद है !
पर फिर गुलामी सा महसूस होता ...
और मैं सैलाब सा भर जाता हूँ |

पता नहीं कैसी आजादी है ..
जहां आधे लोग भूखे मर रहे हैं ..
चंद शासन चला रहे हैं ..
चंद करोडपति बन रहे हैं ..
मैं इसलिए निकलता हूँ ...
मैं इसलिए फिसलता हूँ |

और आज मेरे सब्र की इम्तिहाँ हो गयी है ..
हर एक के लिए मैं खुद को लुटा रहा हूँ ..
लेकिन शायद मैं कम पद जाऊं ..
कुछ हालात की कुछ मेरी कमी है !
अब चलता हूँ मैं ...
फिसलता हूँ मैं ...
तेरा AC कहीं मुझे सुखा न दे !

आंसू चला गया फिर ...
सोचने को मजबूर करता ...
फिर भारत की बात होती ...
खुद से मुझको दूर करता ...

लेकिन ये तो बुलबुला है ...शायद ..
थोड़ी देर में फूट जाएगा ...
आंसुओं का क्या ? पानी ही तो है ..
क्या हुआ जो उनका दिल टूट जाएगा !

और मेरी तरह ही सब सोचते हैं ...
मेरे देश की क्या रवानी है ..
सबकी अपनी कहानी है ..
सबकी अपनी जवानी है |

न फरक पड़ता तुझे ..
और न फरक पड़ता मुझे ...
आंसू और जीवन का क्या है ?
कभी जले कभी बुझे !

फिर भी अगर कसक बची हो दिल में तो ..
चार आंसू तुम भी बहा लेना ...
घर से निकल अपनी गली में कहीं ..
चार आंसू तुम भी मिटा देना |