जब तक मैं कार के विज्ञापन में सामने परोसी जाउंगी ...
जब तक मैं सिगरेट के विज्ञापन में नग्न नजर आउंगी ..
जब तक मुझे बस सजने वाली गुडिया समझा जाएगा ...
जब तक मुझे घर से स्टेशन छोड़ने कोई पुरुष आएगा ...
जब तक मैं बस राजनीति का प्यादा बनकर रहूंगी ..
जब तक मैं बस 'कैसी लग रही हूँ' चुपके से कहूँगी ...
जब तक मुझे बस बेटी, बहिन और माँ समझा जाएगा ...
जब तक TV पर FAIR AND LOVELY का चेहरा आएगा ..
जब तक मैं पुरुषों के बीच गालियों का हिस्सा रहूंगी ...
जब तक मैं नीला चेहरा अपना , बच्चों की खातिर सहूंगी ..
जब तक बस FORUMS पर यूँ बस बात मेरी की जायेगी ...
जब तक हर दिल में इज्जत और आग नहीं लग पाएगी ..
तब तक बोलो कैसे मैं कैसे उस शीशे से बाहर आउंगी ?
तब तक बोलो कैसे मैं सितारों में चमक पाउंगी ?
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