मैं आंसुओं से बात करता ..
पूछता अरदास करता ..
क्यूँ निकलते यूँ अचानक ?
वक़्त की तौहीन करते !
मैं रोकता मैं टोकता ..
मैं नोचता ...मैं सोखता ..
पर वो नहीं रुकते कभी ...
हुक्म की तामील करते !
पर एक आंसू रुक गया ..
उस दिन पलकों की छाँव में ..
फिर वही चौपाल बैठी ..
पुराने उस गाँव में ..|
कहने लगा वो चमककर ..
बह रहा हूँ मैं इधर ...
तेरे बस से क्यूँ बहूँ ...
जब तू इक पत्थर बना |
तू देखता बच्चा कोई ..
सड़क पर कटोरा लिए ...
या तो तू कुछ झिड़कता है ..
या तो कुछ कहता नहीं ..
और मैं भी अब बहता नहीं |
तू देखता किसान तेरा ...
खाना खिलाकर खुद को मारता है ..
और फिर TV ऑन करता तू शान से ..
सरकार को बस झाड़ता है |
मैं बाहर आने को मचलता फिर से ..
तू गर्भ में मुझको मारता है |
पानी में जहर मिल गया है ..
वो परेशान है कैसे पिए !
तू भी परेशान है अपने कुत्ते के लिए ...
बिना PEDIGREE वो कैसे जिए !
अब जब इंसान की ये बात है
तो फिर बता मेरी क्या बिसात है ?
ऐसा नहीं कि मैं अब नहीं निकलता ...
बस आधुनिक प्रेमियों की आँखों में रहता हूँ ...
बिस्मिल और सुखदेव की नहीं ...
शायद देश अब आजाद है !
पर फिर गुलामी सा महसूस होता ...
और मैं सैलाब सा भर जाता हूँ |
पता नहीं कैसी आजादी है ..
जहां आधे लोग भूखे मर रहे हैं ..
चंद शासन चला रहे हैं ..
चंद करोडपति बन रहे हैं ..
मैं इसलिए निकलता हूँ ...
मैं इसलिए फिसलता हूँ |
और आज मेरे सब्र की इम्तिहाँ हो गयी है ..
हर एक के लिए मैं खुद को लुटा रहा हूँ ..
लेकिन शायद मैं कम पद जाऊं ..
कुछ हालात की कुछ मेरी कमी है !
अब चलता हूँ मैं ...
फिसलता हूँ मैं ...
तेरा AC कहीं मुझे सुखा न दे !
आंसू चला गया फिर ...
सोचने को मजबूर करता ...
फिर भारत की बात होती ...
खुद से मुझको दूर करता ...
लेकिन ये तो बुलबुला है ...शायद ..
थोड़ी देर में फूट जाएगा ...
आंसुओं का क्या ? पानी ही तो है ..
क्या हुआ जो उनका दिल टूट जाएगा !
और मेरी तरह ही सब सोचते हैं ...
मेरे देश की क्या रवानी है ..
सबकी अपनी कहानी है ..
सबकी अपनी जवानी है |
न फरक पड़ता तुझे ..
और न फरक पड़ता मुझे ...
आंसू और जीवन का क्या है ?
कभी जले कभी बुझे !
फिर भी अगर कसक बची हो दिल में तो ..
चार आंसू तुम भी बहा लेना ...
घर से निकल अपनी गली में कहीं ..
चार आंसू तुम भी मिटा देना |
3 comments:
क्या गज़ब लिखा है रिखारी भैया.. मज़ा आ गया.. बस मज़ा आ गया!
Bas dhanyavad, aise hee likhte rahein
Bahut hi achha likha hai Rikhari bhaiya. Wish to see more of such soul touching work.
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