Friday, January 25, 2013

गणतंत्र


मेरे भारत की हंसी या रुदन का..
मंत्र क्या है ?
दौड़ता, हिचकोलता, रुकता हुआ ..
वो यन्त्र क्या है?
देखती जिसको स्वप्न मंजरी टकटकी सी ..
वो कराहता पुकारता गणतंत्र क्या है?

वो राजा बन गए हैं आज भी लोगों के ..
गणतंत्र को तोड़ कर 
मरोड़ कर ..
उस किताब की जिल्द को देखा गया ..
पन्ने अभागे छोड़ कर ।

अधिकारों की बात रह गयी है ..
चंद पोथियों की बानी ..
अज्ञानी ज्ञानी बने हैं ..
ज्ञानी जैसे अज्ञानी ।

बिक रहा गणतंत्र ठेलों पर ..
लग रही बोली खेलों पर ..
दरिद्र नारायण रो रहा कोनो में ..
रोटी बची नहीं अभागे दोनो में ।

बंट गया भारत कई दीवारों में  ..
धर्म, जाति, पैसो के हथियारों में ..
जुदा हो गया भारत इंडिया से ..
सेंध लग गयी भारत के आधारों में ।


ये समय है बात समझने का ..
मूल्यों को परखने का ..
संविधान पर धूल जम गयी  ..
उस धूल को फिर से झड़कने का ।

अधिकारों का मान करो ..
कर्तव्यों का संज्ञान करो ..
विश्वास मर गया जो दिल का ..
उसका फिर आह्वान करो ।

अपने मत की कीमत जानो ..
गलत सही को तुम पहचानो ..
राष्ट्र निर्माण की धुरी तुम ही हो ..
केंद्र तुम्ही हो यह भी मानो ।

गणतंत्र गणों का तंत्र है समझो ..
कौन है गण ?
वो तुम ही हो 
वो मैं भी हूँ , 
वो वो भी हैं ..
वो हम भी हैं ।
वो चपल सूर्य ..
वो तम भी हैं ।

तो तम से क्या हम डर जाएँ ?
क्या चुप्पी साधे मर जाएँ ?
या बाँध कफ़न निकलें सर पे ..
और कुछ मतवाला कर जायें ।

सरकार वो नहीं तुम सब हो ..
प्रश्न यही है कब कब हो ?
निरीह मनुज हो आदिम तुम या ..
ज्वलंत धधकता नभ नभ हो ।

गणतंत्र को सफल बनाना है ..
तो सबको साथ निभाना है ..
एक सपना था अलबेलों का ..
एक सपना नया सजाना है ।

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