Wednesday, January 16, 2013

रूबरू


तूफ़ान तो आते रहे हैं सदियों से ..
बेखबर ..
चट्टानों का वजूद आज भी है ..

बजा ले जमाना चाहे दुदुम्भी कोई !
देख ले ...
हौसलों से सजा अपना साज भी है ।

जहर का सैलाब छोड़ा है जमीं पर
ठीक है ..
जहर को धर निचोड़े वो जबर बाज भी है ।

जख्म देते रहो हमें परवाह नहीं ..
पर याद रहे ... 
वो एक बार गिरती गाज भी है ।

फितरते कायर नहीं जो डर जाएँ धमकियों से ..
बस ...
तेरी आँखों के पानी की हमें लाज भी है ।

मौज आएगी तो फ़ना कर देंगे वजूद को तेरे ..
जी हाँ ..
अपनी इस अदा पर हमको नाज भी है ।  

1 comment:

Anand Shankar Mishra said...

रे रे...

ये चीलू का से धमकाने लगे? वो भी नियति को?
क्या पी रहे हो आजकल? :)

वजूद मिट्टी से है
तुम्हारा और माधव का
उसको पूजते हैं लोग
तुम्हें कोसते हैं फिर क्यूँ भला?