तूफ़ान तो आते रहे हैं सदियों से ..
बेखबर ..
चट्टानों का वजूद आज भी है ..
बजा ले जमाना चाहे दुदुम्भी कोई !
देख ले ...
हौसलों से सजा अपना साज भी है ।
जहर का सैलाब छोड़ा है जमीं पर
ठीक है ..
जहर को धर निचोड़े वो जबर बाज भी है ।
जख्म देते रहो हमें परवाह नहीं ..
पर याद रहे ...
वो एक बार गिरती गाज भी है ।
फितरते कायर नहीं जो डर जाएँ धमकियों से ..
बस ...
तेरी आँखों के पानी की हमें लाज भी है ।
मौज आएगी तो फ़ना कर देंगे वजूद को तेरे ..
जी हाँ ..
अपनी इस अदा पर हमको नाज भी है ।
1 comment:
रे रे...
ये चीलू का से धमकाने लगे? वो भी नियति को?
क्या पी रहे हो आजकल? :)
वजूद मिट्टी से है
तुम्हारा और माधव का
उसको पूजते हैं लोग
तुम्हें कोसते हैं फिर क्यूँ भला?
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