क्यूँ आज मचलता हिलोरों में दिल मेरा
की लहर एक खेलती है मनचली सी
भिगोती फिर वही बारिश की वो अदा
अलसाई आँखे जैसे तेरी अधखुली सी
रंग उड़ते हर तरफ सरोबार मैं होता मगर ..
डरता कहीं न सिमटे वो, खिली नन्ही कली सी ।
आज बस नहीं चल रहा , मैं बिन पिए मदहोश हूँ
नैनो की साजिश है ये ढूंढते ,फिर वही गली सी
झूमता मैं हूँ या समां ये पागलपन में !
फिजा गुलाबी है , हवा है संदली सी ।
तूफान अन्दर है बाहर भी, जाने कैसा निरीव सा
उसके मन में भी काश हो ! थोड़ी बहुत खलबली सी !