चांदनी सी बिखर गयी थी
आज जो तुम आई थी
पुरानी सब्जी की दुकान पर
टूटे खंडहर से मकान पर
मैं तो बस यूँ ही मस्ती में
घूम रहा था ..
देख रहा था चाँद को भागते हुए
साथ बादलों के झूम रहा था
क्या पता था की जमीं पर चाँद आएगा
रोशनी में जिसकी दिल
ऐसे ही ठिठक जाएगा !
गुपचुप सा डरा हुआ ये दिल
देख रहा था तुमको
कनखियों से !
नजरे मिलाने की हिम्मत न थी
कुछ बोल पाने की किस्मत न थी
टमाटर सुर्ख लाल दिख रहे थे ..
तुम्हारे अक्स में सरोबार हो
और मैं बार बार पगला उन्ही को बटोर रहा था !
की जैसे वो तुम ही हो ..
आवाज सुनने के लिए इंतज़ार में ..
बैठा भी रहा था ..
झिड़क सुनता सब्जी वाले की ।
और तुम्हारी मुस्कान ने जैसे
समझ लिया था मुझे ..
बात भी कर ली थी
सादगी से चुपचाप ।
और फिर चल पड़ी थी तुम
उसी नजाकत से रास्ते पर
और मैं वापिस खो गया सब्जियों के जहां में
जहाँ अभी भी तुम्हारी खुशबू मौजूद थी ।
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