Friday, May 31, 2013

खलबली

क्यूँ आज मचलता हिलोरों में दिल मेरा 
की लहर एक खेलती है मनचली सी 

भिगोती फिर वही बारिश की वो अदा 
अलसाई आँखे जैसे तेरी अधखुली सी 

रंग उड़ते हर तरफ सरोबार मैं होता मगर ..
डरता कहीं न सिमटे वो, खिली नन्ही कली सी । 

आज बस नहीं चल रहा , मैं बिन पिए मदहोश हूँ 
नैनो की साजिश है ये ढूंढते ,फिर वही गली सी 

झूमता मैं हूँ या समां ये पागलपन में !
फिजा गुलाबी है , हवा है संदली सी । 

तूफान अन्दर है बाहर भी, जाने कैसा निरीव सा 
उसके मन में भी काश हो ! थोड़ी बहुत खलबली सी !

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