निहारिकाओं का अद्भुत संगम ...
कहीं दूर गोचर हुआ ...
फूटी एक अद्भुत किरण ..
धन्य वो अम्बर हुआ !
टिमटिमा कर उसने कहा ..
रोशनी को भर लो वहाँ ...
चाँदनी को ख़ुद में समेटे ..
मयूर नाच रहा है जहाँ !
कोयल के गले से आगे ..
निकली वो तान कहीं जा के ..
छू गई अंतर्मन को एसे ..
चकोर जैसे चांदनी में जागे !
फ़िर चाँद भी शरमाकर बोला ...
प्रेम पुलिंदों का बाँध एक खोला ..
बस एक आरजू मन में लिए ...
कितना निश्छल कितना भोला !
तारों की भी बारी आई ...
कितने नेत्रों को साथ में लायी ...
निहारते रह गई निहारिका वो ..
पलकें झुका कर लजाई !
अब सूर्य आ गया था ...
लाल वर्ण छा गया था ...
निहारिका की हामी को ...
लालिमा से सजा गया था !
फ़िर भी चाँद, तारे और चातक ...
लिए जिनके रात प्यारी दिन घातक ..
मन में एक सपना लिए ...
इन्तजार कर रहे हैं..
पल पल मर रहे हैं !!!
फ़िर भी कहते हैं वो हंसकर ..
हे निहारिका ! बधाई हो ...
हम अभागों के घाव न गिन ...
तुझे मुबारक तेरा जन्मदिन !!!
Sunday, September 14, 2008
Thursday, September 11, 2008
पुकार
व्योम भी गरजता है, परमाणु के सिंहनाद से ..
भीरु बच सका है क्या कभी अंतर्नाद से !
चिंगारियां उठती हैं जब नसों में हो रक्त सा ..
तीन लोक काँपते हैं थम जाता है वक्त सा ..
दिशायें रहम की भिक्षुक बन मार्ग बदलने लगती हैं ..
जब विजय का स्वप्न लिए कहीं दो अक्षि जगती हैं ..
कायरों के लिए नहीं है धरा का ये रण विज्ञान ...
लोरी नही बजती यहाँ चीत्कार लेती है प्राण ...
इसमें है कूदना तो पहले तनिक थम कर सोच लो ...
डर का चील बैठा कहीं तो उतर उसको नोच लो ...
भावनाओं की मधुर कली, है नही खिलती यहाँ ...
न क्षमा कर पाओगे , न क्षमा मिलती यहाँ ...
फ़िर अगर गये हैं प्राण रण में तो कोई चिंता नही ..
वीर हो तुम वीर से शौर्य कभी चिंता नहीं ...
तू ही वो वीर है जो ये कर्म युद्ध जीतेगा ..
तेरा एक एक पल सहस्त्रों वसंत सा बीतेगा ...
भीरु बच सका है क्या कभी अंतर्नाद से !
चिंगारियां उठती हैं जब नसों में हो रक्त सा ..
तीन लोक काँपते हैं थम जाता है वक्त सा ..
दिशायें रहम की भिक्षुक बन मार्ग बदलने लगती हैं ..
जब विजय का स्वप्न लिए कहीं दो अक्षि जगती हैं ..
कायरों के लिए नहीं है धरा का ये रण विज्ञान ...
लोरी नही बजती यहाँ चीत्कार लेती है प्राण ...
इसमें है कूदना तो पहले तनिक थम कर सोच लो ...
डर का चील बैठा कहीं तो उतर उसको नोच लो ...
भावनाओं की मधुर कली, है नही खिलती यहाँ ...
न क्षमा कर पाओगे , न क्षमा मिलती यहाँ ...
फ़िर अगर गये हैं प्राण रण में तो कोई चिंता नही ..
वीर हो तुम वीर से शौर्य कभी चिंता नहीं ...
तू ही वो वीर है जो ये कर्म युद्ध जीतेगा ..
तेरा एक एक पल सहस्त्रों वसंत सा बीतेगा ...
Thursday, September 4, 2008
शिक्षक दिवस पर नमन
शिक्षक है वो ज्योत जिस पर है खड़ा ये सभ्यता का ...
अनूठा इतराता मन्दिर नाचता सा शोभता सा ...
शिक्षकों ने है बनाई समाज की हर एक धुरी ..
जिसपर घूमे मुकुटमणि कुछ फैलता सा , खेलता सा ...
उनका कोई ऋण है तो वो है अकलुषित प्रेम सर्ग ...
जिसका ध्वज हाथों लिए तू घूमता सा नाचता सा ..
मन को अब स्वीकार कर कि उनका ही पथ दिख रहा ..
जिसमें चल पड़ा है तू अब बोलता सा डोलता सा ...
बिम्ब के जैसे जिए हैं वो अनोखे भाव से ...
प्रतिबिम्ब बन जा जरा तू देखता सा भालता सा !!
अनूठा इतराता मन्दिर नाचता सा शोभता सा ...
शिक्षकों ने है बनाई समाज की हर एक धुरी ..
जिसपर घूमे मुकुटमणि कुछ फैलता सा , खेलता सा ...
उनका कोई ऋण है तो वो है अकलुषित प्रेम सर्ग ...
जिसका ध्वज हाथों लिए तू घूमता सा नाचता सा ..
मन को अब स्वीकार कर कि उनका ही पथ दिख रहा ..
जिसमें चल पड़ा है तू अब बोलता सा डोलता सा ...
बिम्ब के जैसे जिए हैं वो अनोखे भाव से ...
प्रतिबिम्ब बन जा जरा तू देखता सा भालता सा !!
शमा और तूफ़ान
भीड़ में चलते हुए एक बात मुझको चुभ गई ...
तूफ़ान में जलती हुई शमा अचानक बुझ गई ?
आग है वो शक्ति जिसमें जलाने की चाह है ...
फ़िर कौन है तूफ़ान जिसकी ये अचंभित राह है ?
अस्तित्व के लिए लड़ी वो आखिरी है साँस अब ..
चिंगारी बन चुकी है ज्वाला गले में है फांस अब ..
शमा फ़िर भी हार माने ये कभी मुमकिन नहीं...
लौ को ज्वाला बनने में भी देर लगती है कहीं !!
तूफ़ान गर तू सोचता है पर्वतों को हिला देगा ...
इस तड़पती एक शमा को निर्विरोध बुझा देगा ..
ग़लत है ये भ्रम है तेरा हो कभी सकता नहीं ...
निश्चयों के दिग् समर में भीरु भी खपता नहीं ...
तू रहेगा तो ये लौ चिंगारियों में ढल जायेगी ...
तू रहेगा तो भी लौ बुझी है न कभी बुझ पायेगी ...
अपने जाने के बाद सर घुमा कर देख ले ...
वो खड़ी है गर्व से ख़ुद को प्रज्ज्वाल्लित किए ...
फ़िर भी तेरा मान रखकर कर गई है ये दुआ ...
तू फ़िर से जोर आजमाइश कर के तो दिखला जरा !!
तूफ़ान में जलती हुई शमा अचानक बुझ गई ?
आग है वो शक्ति जिसमें जलाने की चाह है ...
फ़िर कौन है तूफ़ान जिसकी ये अचंभित राह है ?
अस्तित्व के लिए लड़ी वो आखिरी है साँस अब ..
चिंगारी बन चुकी है ज्वाला गले में है फांस अब ..
शमा फ़िर भी हार माने ये कभी मुमकिन नहीं...
लौ को ज्वाला बनने में भी देर लगती है कहीं !!
तूफ़ान गर तू सोचता है पर्वतों को हिला देगा ...
इस तड़पती एक शमा को निर्विरोध बुझा देगा ..
ग़लत है ये भ्रम है तेरा हो कभी सकता नहीं ...
निश्चयों के दिग् समर में भीरु भी खपता नहीं ...
तू रहेगा तो ये लौ चिंगारियों में ढल जायेगी ...
तू रहेगा तो भी लौ बुझी है न कभी बुझ पायेगी ...
अपने जाने के बाद सर घुमा कर देख ले ...
वो खड़ी है गर्व से ख़ुद को प्रज्ज्वाल्लित किए ...
फ़िर भी तेरा मान रखकर कर गई है ये दुआ ...
तू फ़िर से जोर आजमाइश कर के तो दिखला जरा !!
Wednesday, September 3, 2008
अनजाना सिंहनाद
घंटों की झंकार है ...
पुष्पों का मनुहार है ...
हाथ में चक्र लिए देखो !!
तेज किस पर सवार है ?
सर्पों की फुंकार है ...
वीरों की हुंकार है ..
हो रही है निनादित दिशायें !!
जाने किसकी चहुंकार है ?
पीछे देखो काल है ...
पद तले पाताल है ...
त्रिशंकु सम काबिज़ यहाँ !!
जाने किसकी चाल है ?
मदमस्त गज सा बढ़ चला ..
दिखलाता जग में अद्भुत कला ...
सवाल फ़िर छोड़ गया मन में !!
किसका भाग्य किस पर फला ?
वो पराक्रमी है अद्भुत ...
क्या उसका नाम है ...
जवाब मिल गए हैं सबको !!
उनको प्रणाम है ...
उनका अभिज्ञान है ..
उनका सम्मान है ..
वो ही परिणाम है ..
वो ही अंजाम हैं ..
प्रथम किरण से जागती ..
वो अनूठी शाम हैं ..
सत्य मेव जयते में लिप्त
एक तत्त्व ज्ञान हैं !!
पुष्पों का मनुहार है ...
हाथ में चक्र लिए देखो !!
तेज किस पर सवार है ?
सर्पों की फुंकार है ...
वीरों की हुंकार है ..
हो रही है निनादित दिशायें !!
जाने किसकी चहुंकार है ?
पीछे देखो काल है ...
पद तले पाताल है ...
त्रिशंकु सम काबिज़ यहाँ !!
जाने किसकी चाल है ?
मदमस्त गज सा बढ़ चला ..
दिखलाता जग में अद्भुत कला ...
सवाल फ़िर छोड़ गया मन में !!
किसका भाग्य किस पर फला ?
वो पराक्रमी है अद्भुत ...
क्या उसका नाम है ...
जवाब मिल गए हैं सबको !!
उनको प्रणाम है ...
उनका अभिज्ञान है ..
उनका सम्मान है ..
वो ही परिणाम है ..
वो ही अंजाम हैं ..
प्रथम किरण से जागती ..
वो अनूठी शाम हैं ..
सत्य मेव जयते में लिप्त
एक तत्त्व ज्ञान हैं !!
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