Thursday, September 4, 2008

शमा और तूफ़ान

भीड़ में चलते हुए एक बात मुझको चुभ गई ...
तूफ़ान में जलती हुई शमा अचानक बुझ गई ?

आग है वो शक्ति जिसमें जलाने की चाह है ...
फ़िर कौन है तूफ़ान जिसकी ये अचंभित राह है ?

अस्तित्व के लिए लड़ी वो आखिरी है साँस अब ..
चिंगारी बन चुकी है ज्वाला गले में है फांस अब ..

शमा फ़िर भी हार माने ये कभी मुमकिन नहीं...
लौ को ज्वाला बनने में भी देर लगती है कहीं !!

तूफ़ान गर तू सोचता है पर्वतों को हिला देगा ...
इस तड़पती एक शमा को निर्विरोध बुझा देगा ..

ग़लत है ये भ्रम है तेरा हो कभी सकता नहीं ...
निश्चयों के दिग् समर में भीरु भी खपता नहीं ...

तू रहेगा तो ये लौ चिंगारियों में ढल जायेगी ...
तू रहेगा तो भी लौ बुझी है न कभी बुझ पायेगी ...

अपने जाने के बाद सर घुमा कर देख ले ...
वो खड़ी है गर्व से ख़ुद को प्रज्ज्वाल्लित किए ...

फ़िर भी तेरा मान रखकर कर गई है ये दुआ ...
तू फ़िर से जोर आजमाइश कर के तो दिखला जरा !!

1 comment:

Dhavish said...

Too good buddy...

Bahut khoob...keep it up...