Wednesday, October 8, 2008

प्रभात

चाँद भी इठला रहा है ...उधार के इस तेज पर
तारे बाराती बने हुए है ...व्योम रुपी सेज पर

दूर कहीं से दिख रही है ,,लालिमा की वो छवि
कुछ नही है सूझ रहा ..निस्तब्ध हो गया कवि |

भानु अपने सारथी संग ..पताका लहरा रहा है
निशा को जीतने का ..ध्वज अभी फहरा रहा है |

कोयलों की कूक से ...गुंजित हो गई दिशा
लौट आने का वादा किया ..और चली गई निशा |

पुष्प भी सौंदर्य का ..भान अब करने लगे हैं ...
पत्र भी ओस से ..मांग अब भरने लगे हैं |

एक बूँद ही है ओस की ..भाग्य अपना लिख गई ...
एक खो गई है भीड़ में ...एक मोती बन दिख गई |

दूब भी अब हरितिमा से ..लो लबालब भर गई ...
सूरजमुखी की गात पर ...जादू अनोखा कर गई |

कमल दल भी हो प्रसन्न...पंखुडी खोलने लगे ...
पुष्प किस्मत धन्य कर ..ईश पद डोलने लगे |

समीर भी चल पड़ी है ...पुरवाई से कर जिरह ..
तम देखो रो रहा है ...कैसा भयानक है विरह |

किसान का स्वेद बिन्दु ...बैलों की नुपुर झंकार .
मधुर तान का आना बाना ...शांत है वो फुंकार |

प्रभात की ये मधुर बेला ...आओ इसको नमन करें ...
इसकी सादगी ताजगी खुशबू...स्व जीवन में वहन करें ...

वतन की माटी की खुशबू है...आओ बढाएं अपना हाथ ..
आप सब का मधुर जीवन हो ..आते रहे नव प्रभात |


~वैभव

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