Monday, March 28, 2011

भारत और इंडिया

मेरा 'भारत' 'इंडिया' को देखता है ..सोचता है ...
साथ ही जन्मे थे दोनों ..
१५ अगस्त की पटरी पर ..
बस लाली नहीं थी खून था ..
उस मैली कुचैली गठरी पर |

मेरा भारत कुछ बड़ा हुआ ..
पोलियो का शिकार बन ..
जैसे तैसे खड़ा हुआ |
आँख उठा उसने देखा ..
भाई की किस्मत की रेखा ...
ने उसको बहुत संवारा है ..
वो माँ का दुलारा है !

मेरा भारत सो जाता है पेट पकड़ ..
क्यूंकि निवालों की दौड़ अजीब होती है .
और दर्द उठता है जब तो रख लेता एक पत्थर ..
पेट पर ...
जैसे वो भरा हो !
और सामने देखता MAC-D के बाहर..
इंडिया डाल कर चला जाता है कुछ बर्गर..
कूड़े के ढेर में ..
जिसे खा जाता है गली का वो कुत्ता ..
जिसके साथ भारत कल रात को सोया था |

मेरे भारत को प्यास भी नहीं लगती ...
उसके गले ने रेगिस्तान में रहना सीख लिया है ..
और जब जान पर बन आती है ...
तो चला जाता है गंगा किनारे जहां ..
इंडिया ने अभी कचरा गिराया है |

मेरा भारत खेती करता है ..
मानसून की आस में पल पल मरता है ..
भाई के यहाँ से आये ख़त में देखता ..
कुछ फोटू जहां..
इंडिया रेन डांस करता है |

मेरा भारत स्कूल नहीं जाता ..पढने के लिए ..
होटल जाता है ..चाय के कुछ प्याले उठाने !
जिसे पीकर अभी अभी इंडिया उठा है ..
आँखें चमक तो जाती हैं मेरे भारत की ..
वो बस्ता ..वो पेंसिल ..वो पानी की बोतल !
देख कर लेकिन सोचता है ..
भीख मांगने का टाइम हो गया !

मेरा भारत बीमार नहीं होता ...
क्यूंकि उसे पता नहीं कि ..
'बीमार न होना' क्या होता है ?
अपने भाई इंडिया के बारे में पढता है..
मेडिकल पर्यटन में एक नम्बरी हो गया है |
फिर निकाल लेता एक हरी गोली ..
जो हर बीमारी में खा कर ..
सोच लेता है मैं ठीक हूँ |

मेरा भारत अंग्रेजी नहीं बोलता ..
मेहनत करना जानता है पर ..
पर उससे क्या होता है ?
इंडिया से मिलने जाता है कभी कभी ..
लेकिन दरवाजे पर ही अंग्रेजी सुन कर ..
ठिठक जाता है ..दुबक जाता है..
एक कोने में !
और देखता है चिल्लाते हुए इंडिया को ..
MAC BOOK में नेट के न चलने पर |
सोचता है अपने घर के बारे में ..
कि उसकी बिजली कब लगेगी ?

मेरा भारत सुनता है ..इंडिया तरक्की कर रहा है ..
मन ही मन कुछ आंकड़ो को देखकर खुश होता .
और सोच लेता कि अब उसे भी कुछ मिलेगा ..
इंडिया भी आश्वस्त कर देता उसे ..
कुछ योजनायें ..परियोजनायें.. हर साल अपनी चला कर |
लेकिन मेरे भारत के पास कागज नहीं है ..
भारत होने का !
और लौट आता वो वापिस अपने फूस के मकान में ..
जिससे बनाकर रस्सी कई बार लटक चूका है वो |

5 comments:

Unknown said...

bhrate ab kya kaha jaye..

Unknown said...

Maja aa gaya bhrata shree!!
kaise likh lete ho aap yeh sab kuchh..

Unknown said...

"अति-उत्तम, मनमोहक, जीवंत, सहज एवं सच्चाई-युक्त "-- तारीफ़ करने के लिए मेरे पास शब्द कम है | मैं तो तुम्हारा धन्यवाद करना चाहूँगा भ्राता | पहली बार आपकी कविता मुझे पूरी तरह समझ आई है; वो भी इसलिए क्यूंकि ये इतनी सरल भाषा में लिखी गयी है की हर कोई समझ जाये |

Unknown said...

Superb....

Unknown said...

I have no comment...har pankti ko samjhne ki koshish karti hu but itna aashan nhi samjhna...