मेरे पास ख्वाबों की गठरी पड़ी है ..
मैं चुन चुन के सपने तुम्हें बांटता हूँ ..
गर्दिश में तारे भले आज हैं पर ..
मैं मेहनत की चक्की को फिर छांटता हूँ |
ये दुनिया फरेबी ! फरेबी सही ..
मैं सच की ही बाँहों में फिर जागता हूँ |
ठोकर भी लगती हैं, गिरता हूँ मैं ..
गिर के मैं उठता और फिर भागता हूँ |
आवाजें मेरी घुट गयी हैं कहीं ..
मैं नजरें उठा के फिर बोलता हूँ |
उलझते रहे हैं वो धागे मगर ..
मैं धागा नया एक फिर खोलता हूँ |
मैं खुद में सिमट के रोता भी हूँ ..
एक दिन हसूंगा पर ये जानता हूँ |
बाजी पे बाजी मैं हारा मगर ..
वही खेल खेलूं मैं ये ठानता हूँ |
फूलों में कांटे हैं बिखरे हुए ..
मैं छलनी पकड़ के उन्हें छानता हूँ |
मैं राहों पे चलता भटकता भी हूँ ..
मंजिल मिलेगी पर ये मानता हूँ |
Friday, March 30, 2012
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4 comments:
@vaibhav
lajabab ....indeed!!!
@vaibhav
lajabab ....indeed!!!
bahut khoob.
Zindgi ki asli udan baaki hai,
zindgi ke kai imtehaan baaki hain,
abhi to naapi hai muththi bhar zameen,
aage to pura aasmaan baaki hai
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