Monday, September 16, 2013

रक्तबीज



अखंड वार है प्रचंड
दुश्मनों को खंड खंड
कर चला है वीर हो
रक्तमय सा नीर हो ।

भुजाओं में फड़क नयी
आवाज में धमक वही
गरज के जो वो चले
तो क्या गलत है क्या सही !

रूद्र का प्रताप है
वो अनल का ही ताप है
वरदान है कहीं बना
कहीं पे वो शाप है ।

रोकती जहां जमीं
वो खोदता वहीँ वहीँ
शमशीर की टंकार से
फिर वहाँ गंगा बही ।

वो रक्तबीज है नया
न भाव है न है दया
वो मर गया वो कट गया
वो रास्तो में डट गया ।

हौसले जवाब दे
जब कभी वो सांस ले
थरथरा उठे कदम
लौह बन गया पदम् ।

भीख मांगते सभी
मृत्यु की पनाह में
जी गया वो मर के भी
मृत्यु की ही चाह में । 

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