Tuesday, September 17, 2013

कान्हा



तू मेले को मक्खन दे
मैं चाट चाट के काऊंगा
मुद्को बी एकताला ला दे
मैं बी गाना गाऊंगा ।

मैया तेली डांट ते मुद्को
सच्ची में डल लगता है
मेला तू भलोचा कल्ल्ले
ताल नहीं मैं दाऊंगा ।

वो गोपी मुदे तिलाती है
अपने पात बुलाती है
फिल मैं दब मक्खन काता
तेले पात बताती है ।

तू उतको डाट लगा कल
मैं बी कुच हो दाऊंगा
पिल मैं नाच दिकाऊंगा
तेले मन को बाऊंगा ।

मैंने मिट्टी काई थी
वो लाधा ने मुदे किलाई थी
माँ लाधा मुदे तिलाती है
काला मुदे बुलाती है ।

माँ तू उतको डांट लगा दे
मैं अत्ता कान्हा बन दाऊंगा
फिल जो मिट्टी काई ती
तेले लिये मैं लाऊंगा ।

माँ मैं तो इतना तॊता हूँ
मक्कन उपल होता है
जब मैं उपल जाता हूँ
मक्कन नीचे ऒता है ।

माँ तू मेलको घड़ा ला दे
मैं मक्कन का हो जाऊँगा
फिल तू दब दब पास बुलाये
मैं भी गोदी आऊंगा ।

माँ मैंने कपले नई चुलाये
वो तब मुदे सताती है
मुदको कपडे पैनाकल अपने
चबको कूब हंचाती है ।

माँ उनको बी डांट लगा दे
मैं जमुना बन दाऊंगा
सलकंडे का पेल वहाँ है
बांतुली ले के आऊंगा । 

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