Thursday, September 11, 2008

पुकार

व्योम भी गरजता है, परमाणु के सिंहनाद से ..
भीरु बच सका है क्या कभी अंतर्नाद से !

चिंगारियां उठती हैं जब नसों में हो रक्त सा ..
तीन लोक काँपते हैं थम जाता है वक्त सा ..

दिशायें रहम की भिक्षुक बन मार्ग बदलने लगती हैं ..
जब विजय का स्वप्न लिए कहीं दो अक्षि जगती हैं ..

कायरों के लिए नहीं है धरा का ये रण विज्ञान ...
लोरी नही बजती यहाँ चीत्कार लेती है प्राण ...

इसमें है कूदना तो पहले तनिक थम कर सोच लो ...
डर का चील बैठा कहीं तो उतर उसको नोच लो ...

भावनाओं की मधुर कली, है नही खिलती यहाँ ...
न क्षमा कर पाओगे , न क्षमा मिलती यहाँ ...

फ़िर अगर गये हैं प्राण रण में तो कोई चिंता नही ..
वीर हो तुम वीर से शौर्य कभी चिंता नहीं ...

तू ही वो वीर है जो ये कर्म युद्ध जीतेगा ..
तेरा एक एक पल सहस्त्रों वसंत सा बीतेगा ...

1 comment:

Mohit said...

waah bhai waah uttam uttam uttam bhai sundar sundar sundar bhai....kya rachna hai prabhu ..naman