Monday, March 21, 2011

रण

पथ पुकारता है ..रथ पुकारता है ..
नभ पुकारता है ..अलख पुकारता है |

वीरता की ओट में ..भय भीरु सम समा ..
ओज के उस तेज में ..मुखाग्र को तम तमा ..

तू रौद्र बन ..
चिंघाड़ कर ..
पछाड़ कर ..
वार कर ..

शत्रु भितरघात को .. धरा पर सुला दे ...
शमशीर की उस धार को ...वज्र से मिला दे ..
फूलों की सेज नहीं ..ये चंडिका का तेज है ..
तेज को शिरोधार्य कर ...व्योम को हिला दे |

तू देख खुद को कौन है ...
चीत्कार कर क्यूँ मौन है ?
तूने ही तो शस्त्र उठा ..प्रण ये लिया था !
अस्तित्व झोंकने को अपना ...तर्पण भी किया था !
राष्ट्र हित में खुद को ...अर्पण भी किया था !
भभूत लगायी थी जब ..समर्पण भी किया था !

चक्रव्यूह में देख अब ..द्वार तोडना बाकी है ..
यही तेरा प्याला है ..यही तेरी साकी है ...
आज नशे में आना है ...और कुछ कर जाना है ...
घबरा मत युद्ध और होंगे .....
द्वार तो बस बहाना है ..
द्वार तो बस बहाना है ...

वो देख व्योम लाल है ...
क्यूँ विदीर्ण तेरा भाल है ?
क्यूँ झुकी तेरी ढाल है ?
जब तू स्वयं काल है !
जब तू स्वयं काल है !

रण में वीर बन के लड़ ..
मृत्यु को कुछ यूँ पकड़ ...
ज्यूँ तू यमराज है ..
मृत्यु की मृत्यु आज है |

3 comments:

Maulshree said...

nice one Rikhari ... good to see such good poetry :)

poltergeist said...

maharaj.. ye poem zara Indian cricket team ko bhi mail kar do... :) unke bohot kaam aayegi..!

Mohan said...

ice one dude...keep up