इस दौर में क्या अनोखा समां बंधा है ..
लोकतंत्र में राजा गद्दी पर सजा है |
जनता का जनता के द्वारा जनता के लिए तंत्र है ..
या चुनिन्दा हुक्मरानों के हाथों का वर्ग यन्त्र है ?
इस तंत्र में क्या मरता किसान आता है ?
जिसके लिए बस कागजी धन लुटाया जाता है |
बेबाकी से इस तरह विदेशी निवेश आता है ,
कि बचा खुचा भी फिर से विदेश जाता है |
अजीब बात है यहाँ स्पेक्ट्रम तो बहुत बिकता है ..
लेकिन उस गाँव में रात को आज भी नहीं दिखता है |
पूरे देश में अलग अलग आवाजों में लोकपाल होता है ..
लोकपाल है क्या पूछता कोई रात पुल के नीचे सोता है |
बातचीत से मुद्दे सुलझाने में कहते हैं वो कि गलती नहीं ..
पर क्या करें हमारी मुई संसद भी तो चलती नहीं !
लोकतंत्र है भैया यहाँ वेतन के साथ पेट्रोल के दाम भी बढ़ते हैं ..
कालाहांडी में भूख से मरे बच्चे ..शव आज भी सड़ते हैं |
ये तो सबको पता है ऐसे लोकतंत्र में देर होती है ..
ये किसी को पता है क्या कि कभी सबेर होती है ?
बड़ा अजीब लोकतंत्र है जहां विवेक पता नहीं कहाँ खो जाता है ..
पटरी उखाड़ने की धमकी दे समूह आरक्षित हो जाता है |
अपना वेतन बढ़ने के प्रस्ताव ध्वनि मत से पास होते हैं ..
मुद्रा स्फीति की बात आये तो हुकमरान बैठे बैठे सोते हैं |
कभी बुद्धू बक्से में देखो कैसे ये सब लड़ते हैं ..?
'लोकतंत्र की हत्या न हो' रिमोट पकडे लोग डरते हैं |
लेकिन शायद लोकतंत्र तो पहले ही मर चुका है ..
उसके अंतिम संस्कार भी न हुआ ..
देखो वो सड़ चुका है |
इसे जिलाना है तो संजीवनी लानी होगी ..
जख्म धोने होंगे बूंदें पिलानी होंगी ..
मेरे दोस्तों ! तुम ही मेरे देश के कर्णधार हो ..
तुम ही इस लोकतंत्र के हथियार हो |
Saturday, November 26, 2011
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