Saturday, November 26, 2011

नशा

नशे को मैंने नहीं आजमाया था ..
मेरा महबूब ने मुझे नशा पिलाया था |

नशे में उसके कमबख्त मैं बहक गया था ..
मेरा महबूब धानी चुनरी में जब आया था |

नशे में ही था जब हाथ चूम जुदा किया उसको ..
मेरा महबूब जब सजा के रुसवाई लाया था |

नशे में वो हाथ मेरा महीनो तक न धुला ..
जिससे मुसकुरा महबूब ने एक कौर खाया था |

नशे में होश खोया ये मालूम न था ..
महबूब नहीं महबूब का वो साया था |

नशे में था इंतज़ार की हद तक इंतज़ार किया ..
मेरे महबूब ने फिर से बेवफाई का गीत गाया था |

मेरे नशे तो इसलिए कहता हूँ बदनाम न करो ..
मेरे महबूब से पूछो उसने नशा क्यूँ पिलाया था |