Saturday, December 3, 2011

कशमकश

मेरी जिंदगी अनसुलझे एहसासों का समुन्दर है ..
डूब रहा हूँ नहीं पता कितनी गहराई अन्दर है ?

मुखौटों की बेचैनी मुझे जीने नहीं देती ..
अपने चेहरे की तलाश पीने नहीं देती |

कशमकश का माहौल मेरे अन्दर छाया है ..
मेरे साथ चलता ये किसका साया है ?

मेरे ख्वाब अब श्वेत स्याह हो चुके हैं ..
जो बचे हैं मेरे साथ ही सो चुके हैं |

मुझमें कभी मैं तो कभी कोई और जीता है ..
कौन सा कर्म करूँ ?
बता दे यदि तू गीता है |

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