Sunday, December 11, 2011

चोरी

चुराना था तो तुम्हारा दिल चुराते ..
कम से कम तुम उस अदा से तो मुस्कुराते ..

चुराना था तो तुम्हारी अंगडाई चुराते ..
डरते थे लेकिन उस नूर को कहाँ छुपाते ?

चुराना था तो तुम्हारी आँखों का नशा चुराते ..
पर उस मदहोशी में बताओ कैसे वफ़ा निभाते ?

चुराना था तो तुम्हारी लट का वो बाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे घुमाने की हया समझ पाते ?

चुराना था वो मखमली गाल चुराते ..
पर फिर कैसे उसे छूने की ख्वाहिश जताते ?

चुराना था वो वो अरुण अधर चुराते ..
पर ये बताओ फिर कैसे तुम्हें ऐसे हंसाते ?

चुराना था तो तुम्हारी हरिणी चाल चुराते ..
पर तुम्हें रोक फिर कैसे तुम्हें सताते ?

चुराना था तो तुम्हारी आवाज चुराते ..
पर डरते थे कि खुद को कैसे सुनाते ?

और हमने तो चुराने की ख्वाहिश की थी ..
तुमने तो हमको पहले ही चुरा लिया है ..
सदियाँ हो गयी रास्ता न मिला ..
दिल में ऐसे कहीं छुपा लिया है |

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