वो मोहब्बतें बाजारों में लुटाते हैं बेफिक्र ..
और हम वही खाली गिलास लिए बैठे हैं |
काश कि कभी आँखों की शराब हमें भी मयस्सर हो ..
जिंदगी गुजर रही है ये ..आस लिए बैठे हैं |
मौत से पहले बेमौत मर चुके हैं कब के ..
अब तो बस ये झूठी सांस लिए बैठे हैं |
मक्का काबा सब बेमानी लग रहे हैं ..
तेरी झलक की एक अरदास लिए बैठे हैं |
मेरी दीवानगी पर लोग आज हंसने लगे हैं ..
कौन उन्हें बताये कि हम कुछ खास लिए बैठे हैं |
उनकी बेवफाई के चर्चे बड़े हो रहे महकमो में ..
उन पर फ़िदा कुछ अपनी लाश लिए बैठे हैं |
जिंदगी के जुए में हारना अब तय है ...
क्या करें वो किस्मत के कुछ ताश लिए बैठे हैं |
शराब भी आर पार हो रही है पता नहीं कहाँ ..
लगता है हम फिर वही खाली गिलास लिए बैठे हैं |
Friday, December 30, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment