Sunday, December 11, 2011

इजहार

वो कल रात मेरे चौखट पर आई ..
सकुचाई ..शरमाई ..
हौले से मुस्काई |
चांदनी रात में ..
बात ही बात में ..
मैं इजहार करने वाला था ..
दिल के बाहर ..
प्यार करने वाला था |
लेकिन शब्द अटक गए ..
संदेह खटक गए ..
इकरार और इनकार की कशमकश में ..
कुछ शीशे चटक गए |
वैसे चांदनी रात जवान थी ..
उस शरबत के आगोश में ..
जिसे वो लेकर आई थी ..
मन में लड्डू फूट रहे थे ..
दिल में दिवाली छाई थी ..
लेकिन बाहर मैं अनजान था ..
डरा सा बियाबान था ..
चीखने की हसरत लिए ..
खुद में परेशान था |
इजहार का मौका सही था ..
पर कमबख्त दिल और कहीं था ..
प्रश्न से ज्यादा उत्तर की सोच में ..
शब्दों से ज्यादा भावों के लोच में ..
मैं घिरा हुआ था ..
और फिर स्वेद बिंदु छलक उठे ..
पता नहीं क्यूँ ..शरबत देते हुए ..
उसने मुझे छुआ था |
अब तो प्रलय आ गया था ..
कोहराम छा गया था ..
जैसे बिना आवाज के कोई ..
अच्छा सा गीत गा गया था ..
इस उधेड़बुन में ..
वो जाने लगी थी ..
अपनी आँखें झुका कर ..
लटों पर हाथ फिर कर ..
शरमाकर ..सकुचाकर ..
और मैं इजहार की उम्मीद को ..
उस हसीं गीत को ..
दिल में दफन करने वाला था ..
रंगों की चादर को ..
फिर कफ़न करने वाला था |
कि अचानक वो पीछे मुड़ी ..
पास आई ..
साँसों से सांसें जुडी ..
और वो हौले से बोली ..
आप बेकार ही इतना तकल्लुफ करते हैं ..
घबराइए मत ! हम भी आप पर मरते हैं |

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