Monday, December 31, 2012

नव वर्ष

एक और गया है साल पुराना ..
मदहोश हुआ है फिर ये जमाना ..
वादे किये होंगे तुमने भी ..
उनको प्यारो भूल न जाना ।

वर्षों की मोहताज जिंदगी ..
रुक रुक कर यूँ चलती है ..
कभी हैं मिलते दलदल दुःख के ..
कभी बहारें मिलती हैं ।

साल बदलते जाते हैं ..
मनु भी चलता जाता है ..
समय भी बस कुलांचे भरता ..
वापिस कभी न आता है ।

कुछ यादें बनती जाती है ..
कुछ सपने मरते जाते हैं ..
पंख लगा के आशाओं के 
हम सब चलते जाते हैं ।

अपना तो बस कर्म यही है ..
जीवन का बस मर्म यही है ..
जीते रहे अभी तक ऐसे ..
सोचो तो बस धर्म यही है ।

मेरी इच्छा है मुकुटमणि अब ..
इंसानों सा जीना सीखे ..
अमृत हो या विष हलाहल ..
एक भाव से पीना सीखे ।

मेरी इच्छा है सम हो जाऊं ..
विशाल बनूँ तो कम हो जाऊं ..
शीत में दूं मैं ताप सुखद वो ..
सूखे में कुछ नम हो जाऊं ।

मेरी इच्छा तुम सब भी हो ..
प्रिय मेरे तुम अब भी हो ..
सपनो को साकार करो तुम ..
निरीह बुतों में प्राण भरो तुम ।

तुम सब गर खुश हो जाओगे ..
नींद चैन की सो पाओगे ..
तो मैं समझूंगा की मेरा ..
नया साल अब आया है ..

जब तुम खुशियाँ बाँटोगे ..
और जब तुम आँसू पॊछोगे ..
तो मैं समझूंगा धरती पर ..
नया स्वर्ग वो लाया है ।

नव वर्ष की शुभकामनाएं ।

Saturday, December 29, 2012

श्रद्धांजलि


ये कविता उस बहादुर लड़की को समर्पित है जिसने आज अपने जीवन की अंतिम सांस ली है । उसकी आत्मा की शांति के लिए और इस दुनिया में इंसानियत को फिर से वापिस लाने के लिए आइये मिलकर प्रार्थना करें ।

प्रथम भाग ..
काली अंधियारी रातें हैं 
हर ऒर सिसकती सांसें हैं ..
वो देखो घर फिर उजड़ गया ..
तिनका तिनका वो बिखर गया ।

ये मंद हवा तूफ़ान बनी ..
चलते चलते वो भटक गयी ..
उस फूल ने लड़ना चाहा पर ..
ये बात ही उसको खटक गयी ..

उस पुष्प का मर्दन मान हुआ ..
तूफ़ान को फिर अभिमान हुआ ..
वो पुष्प लड़ा जीवन के लिए ..
जीवन लेकिन वो हार गया ..
वो उस अनंत के पार गया ..

द्वितीय भाग ...
जहां सब कुछ सुन्दर अच्छा है ..
जहां हर दिल मधुरिम सच्चा है .
जहां नए पुष्प भी  खिलते हैं ..
जहां बिछड़े फिर से मिलते हैं ।

जहां कोई दरिंदा कहीं नहीं ..
जहां गंगा फिर से शुद्ध बही ..
जहां मुस्कानों को मोल मिले ..
जहां खुशियाँ भी अनमोल मिले ।

जहां धर्म नस्ल और जात नहीं ..
जहां अँधेरी ये रात नहीं ..
जहां कोयल अभी भी गाती है 
माँ हर पल लोरी सुनाती  है ।

जहां बड़ा कोई न छोटा है ..
जहां निर्बल कोई न होता है ..
जहां मोर पंख फैलाता है ..
और सुन्दर नाच दिखाता है ..

जहाँ बंसी कान्हा बजाता है ..
जहां राम वचन को निभाता है ..
जहां रावण भी बस ज्ञानी है ..
जहां दुःख बस एक कहानी है ।

तृतीय भाग ..
अच्छा हुआ तू चला गया ..
ये दुनिया तेरे योग्य नहीं ..
ये फिजा बड़ी जहरीली है ..
कुछ भी तेरे भोग्य नहीं ।

तेरे जैसे लाखों पुष्प यहाँ ..
रोज सिसकियाँ भरते हैं ..
पंखुड़ियां हिलती हैं बेबस  ..
रोज रोज वो मरते हैं ।

यहाँ मानव नहीं हैं दानव हैं ..
जो अट्टाहस बस करते हैं ..
तेरे रक्षक बैठे कोनो में ...
काला मुख करके डरते हैं ।

तुझमें लड़ने की हिम्मत तो थी ..
यहाँ तो सारे कायर हैं ..
तू देख रहा होगा उस जग से ..
बिना लड़े ही घायल हैं ।

ये तेरा दुःख तो मनाएंगे ..
ये तुझको तुझ पे चढ़ाएंगे ...
ये बातें बड़ी करेंगे अब ..
फिर तुझको यूँ ही भुलायेंगे ।

अंतिम भाग ..
मेरा तुझसे ये वादा है ..
माली बन तुझको सींचूँगा ..
जिस डाली से तू अलग हुआ ..
उस डाली को मैं खींचूंगा ..

उस ओर जहां पर सूर्य नया ..
तेरे ऊपर फिर से चमक उठे ..
एक बीज नया भ्रमर ले आये ..
तेरा चेहरा फिर से दमक उठे ।

जब तक मेरी सांस चलेगी ..
मैं  वचन निभाऊंगा ..
और तुझसे मिलने पर उस जग में ..
यही गीत मैं गाऊंगा ..
हाँ यही गीत मैं गाऊंगा ।

Monday, December 24, 2012

बलात्कार


बलात्कार का मौसम है ..
देश मेरा  AWESOME है ..
देखो किसको मिली जीत  ?
किसको मिली हार !
किसको चढ़ाया सर ?
किसका हुआ बलात्कार ?

राजनेता दिन दहाड़े यहाँ ..
रोज मेरे देश को नोचते हैं ..
जख्मी पड़ा मेरा देश सामने ..
भ्रष्टाचार करते बलात्कारी ..
कहाँ कुछ सोचते हैं !

मीडिया भी कर रहा बलात्कार ..
लोगों की भावनाओं का ..
फिर देख रहा हंसकर ..
ले रहा पैसे भी ..
कपड़े उतारती निगाहों का !

मेरे देश के युवा की संवेदनशीलता ..
आज STATUS MESSAGE से ..
होती है निर्धारित !
मोमबत्ती जलाने जाता तो है ..
मन में लेकिन बलात्कार का विधेयक ..
बहुमत से कर देता पारित । 

इंसान ही नहीं !!
मानसून भी कर रहा बलात्कार ..
कुछ चंद अनजाने किसानों का ..
उनके लिए सडकें सूनी हैं ..
ग़ायब है हुजूम दीवानों का ।

आम आदमी का भी तो रोज बलात्कार होता है ..
मजबूरी में वो कभी अधिकारियों , कभी दबंगों ..
और कभी राजनेताओं के साथ सोता है ।
फिर जाता है मदद मांगने वर्दी से ..
और वहां फ़िर उसका बलात्कार होता है ।

और न्याय का मंदिर तो ..
सदियों से बलात्कारी रहा है ..
कई सालों बाद चीख निकलती है किसी की ..
पता भी नहीं चलता की किसने कहा है !

और आज फिर से ..
एक औरत का हुआ है बलात्कार ..
पूरा देश खड़ा होकर कर रहा चीत्कार ।
अच्छा है इस बहाने कहीं थोड़ी ..
मानवता तो जागी है ..
बस याद ये रखना है कि मेरे देश में ..
वो अकेले नहीं अभागी है !

बलात्कार मीडिया बस दिखाए तो ही  ..
बलात्कार नहीं होता !
और ये सच है अगर तो इस देश में तो  ..
स्त्री का सम्मान नहीं खोता !

अमीर की इज्जत का कर रहे सम्मान ..
और गरीब की इज्जत को कर रहे बदनाम ..
तो हम भी बलात्कारी हैं ..
अपने खोखले आदर्शों के !
जितनी जिंदगी जी हमने ..
उन तमाम वर्षों के ।

और केवल तन का बलात्कार नहीं होता ..
मन का भी बलात्कार होता है ..
कभी लिंग बदल के अपना देखो ..
कैसा भयावह चीत्कार होता है ।

मुझे बस एक वादा दे दो ..
इन सब बलात्कारों के लिए लड़ोगे ..
सारे बलात्कारियों को चढाओगे फांसी ..
किसी से नहीं डरोगे !

आज अगर तुम नहीं उठे तो ..
भूखे कुत्ते हैं तैयार ..
और फिर कभी खबर बनेगी ..
तुम्हारा भी हुआ बलात्कार !!!!!

Thursday, December 13, 2012

घुटन


मैं ख्वाब अकेले बुनता हूँ ..
मेरा अपना ही धागा है ..
मेरी चादर भी है अलग थलग ..
मेरा अपना ही प्यादा है ।

मुझे पार समुन्दर जाना है ..
मुझे घर वो नया बसाना है ..
मैं वादों का मोहताज नहीं  ..
न मुझको कुछ भी निभाना है ।

मेरी दुनिया अलग थलग सी है ..
मेरे सपने नये नये से हैं ..
न तुम समझे न वो समझे ..
जो आंसू गये गये से हैं ।

रीत अनोखी इस दुनिया की ..
चेहरों का बाजार लगा है ..
चप्पू चला रहा है पागल ..
कौन है वो जो पार लगा है ?

घुट घुट कर जीता है तू भी ..
पता नहीं खुश कैसे है !
दिल तेरा है हँसता रोता ..
 तू तो मुखौटे जैसे है । 

मुझे अविरल धारा बनना है ..
जो बह जाऊं उस ओर कहीं ..
कोई बाँध सामने मत लाना ..
मेरी अपनी है भोर कहीं ।

और जो तुम मुझको बाँधोगे ..
तो मैं बिखरूँगा बिखराऊंगा ..
फिर तुम भी इक दिन टूटोगे ...
मैं उसी राह पर जाऊँगा ।

मुझको रिश्तों से मोह नहीं ..
यहाँ सभी स्वार्थ के मारे हैं ..
निःस्वार्थ प्रेम बस शब्द निरा है ..
इस पर सब जीवन हारे हैं ।

मैं कैसे ऐसे जी लूं जब ..
जीना हर पल का मरना है ..
मैं अपने में ही खुश हूँ मुझको ..
अपना ही कुछ करना है ।

मेरी बातें तुम समझ सको तो ..
कष्ट से तुम भी बच जाओगे ..
जिस घर में तुम साँस ले सको ..
ऐसे घर में तुम आओगे ।

और अगर ये व्यर्थ लगे तो ..
मुर्दा बनकर जीते रहना ..
एक एक घूँट उस कड़वे सच का ..
मरते दम तक पीते रहना ।

Tuesday, December 11, 2012

इस्कूल


भविष्य के उस भारत को  ..
सरकारें लुभाती देखो ..
योजनाओं के अखाड़े में ..
कैसे उसे लड़ाती देखो !

पढ़ना सीमित हो गया ..
नामांकन अनुपातों के ढेर में ..
सरकार खुश हो गयी ..
आंकड़ों के फेर में ।

स्कूलों में अब खाना मिल रहा है ..
कंकड़ वाला ! पर परवाह किसे ?
शिक्षाओं की सैलरी बढ़ गयी ..
अब पढ़ाने की चाह किसे ?

समाज के सारे ठेकेदारों में ..
बंदरबांट चल रही है ..
शिक्षा का मंदिर खतरे में है ..
पैसों की सांठ गाँठ चल रही है ।

शिक्षा का पैमाना बस ..
स्कूल आने तक सिमट गया है ..
ज्ञान का मतलब अब ...
किताबों से मिट गया है ।

लड़ाई अब कार्टूनों को लेकर होती है ..
इस पर नहीं की ....
कार्टूनों को कोई देख रहा है या नहीं !
फेंक रही सरकारें कुछ कच्चे टुकड़े ..
देखती नहीं की ..उनको पकाने के लिये
कोई सेंक रहा है या नहीं !

शिक्षक शिक्षा के अलावा और ..
सब कुछ कर रहे हैं ।
जो जा रहे हैं स्कूल ..उनके घरों में ..
कुछ लोग भूखे मर रहे हैं ।

ये गरीबी है दुश्मन ?
या आदत है दोषी !
जो घर में हो बरकत ..
न समझे पडोसी ।

मगर क्या गुनाह है  ?
उस बस्ते का लेकिन !
जो सदियों से ऐसे ..
फटा जा रहा है ।

वो नन्ही सी पेन्सिल ..
नए ख्वाब लिखना ..
कब से है भूली !
सिमट सी गयी है ।

उन आँखों के सपने ..
मर से गए हैं ..
उनींदी सी पलकों में ..
डर से गये हैं ।

एक चादर हो कोई ..
जो आशा की इस पल ..
ले आओ और आकर ..
इनको ओढ़ा दो ।

ये पलकों के मोती है ..
मोती रहेंगे ..
जो  देना हो वादा ..
तो वो तुम मुझे दो ।