Thursday, December 13, 2012

घुटन


मैं ख्वाब अकेले बुनता हूँ ..
मेरा अपना ही धागा है ..
मेरी चादर भी है अलग थलग ..
मेरा अपना ही प्यादा है ।

मुझे पार समुन्दर जाना है ..
मुझे घर वो नया बसाना है ..
मैं वादों का मोहताज नहीं  ..
न मुझको कुछ भी निभाना है ।

मेरी दुनिया अलग थलग सी है ..
मेरे सपने नये नये से हैं ..
न तुम समझे न वो समझे ..
जो आंसू गये गये से हैं ।

रीत अनोखी इस दुनिया की ..
चेहरों का बाजार लगा है ..
चप्पू चला रहा है पागल ..
कौन है वो जो पार लगा है ?

घुट घुट कर जीता है तू भी ..
पता नहीं खुश कैसे है !
दिल तेरा है हँसता रोता ..
 तू तो मुखौटे जैसे है । 

मुझे अविरल धारा बनना है ..
जो बह जाऊं उस ओर कहीं ..
कोई बाँध सामने मत लाना ..
मेरी अपनी है भोर कहीं ।

और जो तुम मुझको बाँधोगे ..
तो मैं बिखरूँगा बिखराऊंगा ..
फिर तुम भी इक दिन टूटोगे ...
मैं उसी राह पर जाऊँगा ।

मुझको रिश्तों से मोह नहीं ..
यहाँ सभी स्वार्थ के मारे हैं ..
निःस्वार्थ प्रेम बस शब्द निरा है ..
इस पर सब जीवन हारे हैं ।

मैं कैसे ऐसे जी लूं जब ..
जीना हर पल का मरना है ..
मैं अपने में ही खुश हूँ मुझको ..
अपना ही कुछ करना है ।

मेरी बातें तुम समझ सको तो ..
कष्ट से तुम भी बच जाओगे ..
जिस घर में तुम साँस ले सको ..
ऐसे घर में तुम आओगे ।

और अगर ये व्यर्थ लगे तो ..
मुर्दा बनकर जीते रहना ..
एक एक घूँट उस कड़वे सच का ..
मरते दम तक पीते रहना ।

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