Tuesday, December 11, 2012

इस्कूल


भविष्य के उस भारत को  ..
सरकारें लुभाती देखो ..
योजनाओं के अखाड़े में ..
कैसे उसे लड़ाती देखो !

पढ़ना सीमित हो गया ..
नामांकन अनुपातों के ढेर में ..
सरकार खुश हो गयी ..
आंकड़ों के फेर में ।

स्कूलों में अब खाना मिल रहा है ..
कंकड़ वाला ! पर परवाह किसे ?
शिक्षाओं की सैलरी बढ़ गयी ..
अब पढ़ाने की चाह किसे ?

समाज के सारे ठेकेदारों में ..
बंदरबांट चल रही है ..
शिक्षा का मंदिर खतरे में है ..
पैसों की सांठ गाँठ चल रही है ।

शिक्षा का पैमाना बस ..
स्कूल आने तक सिमट गया है ..
ज्ञान का मतलब अब ...
किताबों से मिट गया है ।

लड़ाई अब कार्टूनों को लेकर होती है ..
इस पर नहीं की ....
कार्टूनों को कोई देख रहा है या नहीं !
फेंक रही सरकारें कुछ कच्चे टुकड़े ..
देखती नहीं की ..उनको पकाने के लिये
कोई सेंक रहा है या नहीं !

शिक्षक शिक्षा के अलावा और ..
सब कुछ कर रहे हैं ।
जो जा रहे हैं स्कूल ..उनके घरों में ..
कुछ लोग भूखे मर रहे हैं ।

ये गरीबी है दुश्मन ?
या आदत है दोषी !
जो घर में हो बरकत ..
न समझे पडोसी ।

मगर क्या गुनाह है  ?
उस बस्ते का लेकिन !
जो सदियों से ऐसे ..
फटा जा रहा है ।

वो नन्ही सी पेन्सिल ..
नए ख्वाब लिखना ..
कब से है भूली !
सिमट सी गयी है ।

उन आँखों के सपने ..
मर से गए हैं ..
उनींदी सी पलकों में ..
डर से गये हैं ।

एक चादर हो कोई ..
जो आशा की इस पल ..
ले आओ और आकर ..
इनको ओढ़ा दो ।

ये पलकों के मोती है ..
मोती रहेंगे ..
जो  देना हो वादा ..
तो वो तुम मुझे दो ।

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